
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
जिस तरह कथा श्रवण करने जाते है तो अपना घर छोड़ कर पांडाल में आना पड़ता है, उसी तरह एक अच्छा जीवन पाने के लिए तृष्णा, लालच मोह आदि को छोड़ कर निकलना पड़ता है. इंसान की पहचान करने के लिए धन, सम्पदा, सम्पति वाहन आदि की आवश्यकता नहीं होती, उसकी बोली, उसके शब्द ही उसकी पहचान करा देते है. बेटियों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार देना भी आवश्यक है. अगर माँ थकी हुई दिखे, तो बेटी अपनी माँ का ध्यान रखें. माँ बर्तन धो रही हो और बेटी मोबाइल चलाए यह अच्छे संस्कार नहीं है. जो बेटी अपने घर में अपने माता पिता का ध्यान रखती है. उसके ससुराल से कभी कोई शिकायत नहीं आ सकती. किसी भी परिवार की पहचान उस घर के संस्कारों से होती है.. यदि घर में कोई अतिथि आता है आप सम्मान पूर्वक जलपान आदि का पूछ भर लेते है तो यह आपका ही नहीं बल्कि उस अतिथि के लिए पुरे परिवार का परिचय दे देता है जिस तरह मंगलसूत्र में सभी दाने एक जैसे नहीं होते, कुछ दाने सोने के, कुछ दाने काले होते है. उसी तरह जीवन में सुख दुःख आते जाते रहते है. ये स्थिर नहीं रहते. इसलिए धेर्य से, प्रेम से दाम्पत्य जीवन बिताना चाहिए. मंगलसूत्र में जिस तरह अंत में एक पेंडील आता है, उसी तरह जीवन में भी अन्तः में सुख का एक बड़ा पेंडील हमें प्राप्त होता ही है. भगवान यह नहीं देखते है तुमने नहाकर पुष्प तोड़े है या बिना नहाए पुष्प तोड़े है. वे केवल अर्पित करने वाले का भाव देखते है. अर्पित करने वाला ने कितने भाव से, कितने प्रेम से पुष्प अर्पित किये है. इंसान तो हर घर में जन्म लेता है.. मगर इंसानियत कही कहीं ही, किसी किसी घर में ही जन्म ले पाती है. जिस तरह वाहन चलता है तो अच्छी बुरी कैसे भी सड़क हो वाहन के टायर को सब सहना पड़ता है. रास्ते में खड्डे हो या सड़क अच्छी हो, वह सब वाहन के टायरों को सहन करना पड़ता है. परन्तु फिर भी वह वाहन, उसमें सवार सवारियों को गंतव्य तक पहुचाता है. जीवन में कई तकलीफें आएँगी, कई परेशानियां आएगी परन्तु धेर्य एवं साहस रखते हुए अपने परिवार को सुख सम्रद्धि तक पहुचाने की जिम्मेदारी आपके कन्धों पर होती है. एक ही दिन एक ही समय पर कई बच्चों का जन्म होता है, फिर भी सभी का भविष्य एक जैसा नहीं हो सकता है. उनका भविष्य उनके कर्म, उनकी मेहनत, कार्य के प्रति उनकी लगन से तैयार होता है. एक दिन शकर वाली चीटी ने नमक वाली चीटी से कहा तू कब तक यह नमक खाया करेगी. चल आज मेरे साथ मैं तुझे शकर खिलाती हूँ. नमक वाली चीटी ने सोचा क्या पता वहां नमक मिले नहीं मिले, मैं तो अपने मुंह में थोडा सा नमक रख ही लेती हूँ. वह एक नमक थोड़ा मुह में रख लेती है. और आगे बढती है. गंतव्य पर पहुच कर शकर वाली चीटी ने थोड़ी शकर दी खाने को, नमक वाली चीटी वह शकर खाने लगी. परन्तु चूँकि मुह में पहले से नमक था उसे नमक का ही स्वाद आया. शकर वाली चीटी ने पूछा क्यों कैसी लगी शकर? नमक वाली चीटी ने कहाँ – ‘क्या शकर, मुझे तो नमक का ही स्वाद आ रहा है’. जब हम भी शिव मंदिर में जाते है तो आँखों में तो उम्मीद होती है परन्तु मन में अविश्वास भी होता है कि पता नहीं मेरा काम होगा भी की नहीं, शिव सुनेगा की नहीं. हम शिव के मंदिर में उम्मीद से जाते है, लेकिन वहीँ अविश्वास का नमक आपके मन में है तो कभी आप विश्वास रूपी शिव का आनंद नहीं ले पाओगे. अगर आप के मन में अविश्वास की जगह विश्वास ने ली है. तो वह शिव आपकी मनोकामना जरुरी पूरी करेगा. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम🙏🙏 कृपया अन्य भक्तों से भी अवश्य शेयर करें
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