
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
प्रतिदिन हमें 86400 सेकंड प्राप्त होते है. इनमें से केवल 1 सेकंड भी हमने भगवान भक्ति में लगा दिए, तो बाकी के सेकंड, बाकी का समय शिव स्वयं सुधार देता है शिव मंदिर में जाकर हमें प्रार्थना करना कि पहले तो कभी वापिस म्रत्यु लोक में जन्म न लेना पड़े. फिर यदि कभी जन्म हो तो कृपा करना की वाणी से केवल शिव नाम जप सकूँ, हाथों से शिव की सेवा कर सकू. अपने चरणों से शिव मंदिर, शिव के दर पर आ सकू. बीमारी से ग्रसित होने पर, वह बीमारी से ज्यादा हमें नकारात्मक विचार ज्यादा बीमार कर देते है. थोडा सा भी बीमार होने पर व्यक्ति कैंसर तक का विचार मन में ले आता है. ऐसा करने से बचना चाहिए. हमें सकारात्मक विचारों से उस व्याधि का उपाय करना चाहिए. जब हम भोजन करते है तो थाली में तो सब सामग्री अलग अलग होता है. लेकिन जब भोजन कर लेते है तो पेट में सब एक जगह जाता है, उनके लिए कोई अलग अलग खंड नहीं होता. सब भोजन पेट में एक जगह जाता और रक्त की एक बूंद को बनाता है. इसी तरह चाहे हम राम को भजे, चाहे कृष्ण को भजे, अंत में सब नाम एक की ही शरण में जाते है अगर बच्चा रोता है, तो माँ बच्चे को तब तक गोदी में बिठा के चुप करने का प्रयास करती है, उसके हाथ में खिलौना देती है जब तक उसका मन किसी दुसरे खिलौने में या किसी अन्य खेल में मन नहीं लग जाता. जैसे ही वह चुप हो जाता है, उसे धीरे से निचे उतार कर अपने काम में लग जाती है. परमात्मा हमें वैभव, धन, सम्पदा का झुनझुना हाथ में दे देता है और हमें गोदी से निचे उतार देता है. हम परमात्मा को भुला देते है. प्रयास करें चाहे हम कितनी भी अच्छी परिस्थिति में हो, धन सम्पदा, वैभव हो परन्तु अपने परमात्मा को न भूलें. ताकि वह कभी हमें अपनी गोदी से निचे न उतारें. विश्वास अविश्वास में क्या अंतर है विश्वास: शरीर में कोई रोग हो गया, डॉक्टर को दिखाया वहा से दवाई लाए. भगवान भोलेनाथ को साक्षी मानकर, भोलेनाथ से रोग दूर करने की प्रार्थना कर दवाई सेवन की. रोग दूर किया. यह विश्वास है अंधविश्वास: आप डॉक्टर के पास गए दवाई ले ली, घर पर रख दी परन्तु गृहण नहीं की. इधर उधर झाड फुक करवाने लग गए. मानकर बैठ गए मैं तो भोले का भक्त हूँ मैं स्वयं ठीक हो जाऊँगा. यह गलत है. यह अंधविश्वास है. गुरुदेव कहते है, डॉक्टर को भी दिखाए, डॉक्टर से दवाई ले एवं कुन्द्केश्वर महादेव का स्मरण करते हुए दवाई ग्रहण करें.
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