
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
आज की कथा में अंधकासुर के वध का प्रसंग श्रवण करने को प्राप्त हुआ. मानव शरीर में पानी और वाणी इन दोनों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है पानी यदि गन्दा हो जाए तो पिने लायक नहीं रहता, वाणी गन्दी हो जाए तो व्यक्ति बात करने लायक नहीं रहता यदि अतिथि आए तो उसे जलपान कराए, आपके दर से कोई प्यासा न जाए, एवं किसी से ऐसी वाणी न बोले की हम स्वयं अपवित्र हो जाए. ताड़कासुर ने अपने तिन बच्चों को बुलाकर कहा इन लोगो को कभी नहीं भूलना चाहिए मुसीबत में डालने वाले को कभी नहीं भूलना चाहिए मुसीबत से निकालने वाले को कभी नहीं भूलना चाहिए एवं मुसीबत में साथ देने वाले को कभी नहीं भूलना चाहिए मृत्यु कब आएगी, कैसे आएगी, हम किस दशा में होंगे, कहाँ होंगे यह केवल देवाधिदेव महादेव जानता है. अभी तक का जीवन कैसे जिया, कितना कमाया सब आपको पता होगा, परन्तु यह कोई नहीं बता पाया है की मृत्यू कैसे होगी एवं कब होगी. (यह सभी जानकारी www.gkcmp.in पर भी उपलब्ध है) स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी से पूछा प्रभु का स्मरण/भजन कब करना चाहिए. गुरू परमहंस जी ने जवाब दिया – मृत्यु से एक मिनिट पहले करना चाहिए. विवेकानंद: - कैसे पता चलेगा, मृत्यु कब आएगी? गुरु परमहस: जब पता ही नहीं है मृत्यु कब आएगी, तो बेहतर है हर पल, हर क्षण हम प्रभु भक्ति के साथ बिताएं. शहर में यदि कोई साधू/संत आ जाए तो उसे भिकारी/भिक्षुक समझते है. गाँव में यदि कोई भिकारी भी आ जाए तो उसे संत समझते है. गाँव में यदि स्वयं की कोई जमीन है तो उसे बेच कर शहर में जाने का विचार मत करना. जो सुख गाँव में है, वह सुख शहर में नहीं है. भीतर की प्रसन्नता का जो जीवन गाव में बिताया जा सकता है, वह शहर में नहीं बिताया जा सकता है कई बार लोगो के मन में प्रश्न आता है – माँ नर्मदा नदी से कोई शिवलिंग लाए है, परन्तु प्राण प्रतिष्ठा नहीं कर पाए है, क्या प्राण प्रतिष्ठा करना आवश्यक है. गुरुदेव कहते है – लिंग पुराण, नर्मदा पुराण, स्कन्दपुराण के अंतर्गत विवरण प्राप्त होता है कि माँ नर्मदा नदी से प्राप्त शिवलिंग के प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं है. वह स्वयं में सिद्ध होता है. भगवान का नाम स्मरण करने का कोई समय या स्थान नहीं होता है. रात्रि में यदि नींद ना आए तो बिस्तर में बैठ कर या लेटे हुए ही प्रभु का नाम स्मरण करिए. किसी समस्या में, कोई व्याधि हो, कोई रोग हो मन से शिव का नाम स्मरण कर सकते है (यह सभी जानकारी www.gkcmp.in पर भी उपलब्ध है) अज्ञानता वश की गई कोई पूजन त्रुटी से पूजन बाधित नहीं होता है, यदि पूर्व में कोई पूजन किया हो और जानकारी के अभाव में कोई त्रुटी भी हो गई हो तो शिव पूजन स्वीकार करता है. क्योंकि वह त्रुटी अज्ञानता वश हुई है, जानबुझकर गलती नहीं की है. प्रयास करे सही पूजन की जानकारी रखे, एवं जो जानकारी प्राप्त है उसे यथावत पालन करने का प्रयास करें. हिरण की गति शेर से ज्यादा होती है फिर भी वह शिकार हो जाता है, क्योंकि वह बार बार पीछे मुड़ कर देखता है. जीवन में कभी पीछे मुड़ कर मत देखिये, पहले यदि कोई असफलता भी प्राप्त हुई है, तो उससे सिख प्राप्त कर आगे बढ़ जाना चाहिए, बार बार उसका अफ़सोस मान कर बैठ जाना गलत है. गुरुदेव कहते है, जब भी कभी मंदिर जाए तो रास्ते में कभी किसी के घर होते हुए न जाए, ना ही मंदिर से आते समय किसी के घर रुकते हुए आये. यदि पूजन के लिए जा रहे है तो घर से सीधे मंदिर जाएं, एवं पूजन पश्चात मंदिर से सीधे घर को आए. हार उसकी होती है जो हाथ पर हाथ रखकर बैठा रहता है, मेहनत करने वाला तो एक दिन न एक दिन विजय प्राप्त कर ही रहता है. गाँव में यदि कोई गरीब है बहुत छोटा व्यक्ति है उसके बारे में कभी कोई बात नहीं करेगा. लेकिन यदि वहीँ व्यक्ति किसी दिन बड़ा बन जाए तो उसकी वाह वाही होने लगेगी, साथ ही वह निंदा का पात्र भी बनेगा. कितना भी प्रयास कर लो, दुनिया वालों से अच्छाई और बुराई दोनों मिलती ही रहती है. गुरुदेव कहते है यदि कोई उपाय करने के लिए आप मंदिर नहीं जा पा रहे है तो आप घर पर ही वह उपाय कर सकते है. कोई कोई उपाय रात्रि के होंते है, ऐसे समय हो सकता है आस पास के मंदिर खुले न हो या वहां नहीं जा सकते हो, तो ऐसी स्थिति में अपने घर पर भी वह उपाय किया जा सकता है. शिव तीर्थ, शिव पुराण कथा आदि स्थान पर्यटन के लिए नहीं है, जहां आप एन्जॉय के भाव से जा रहे है. आपने भक्ति के भाव से जाना चाहिए. आज कल तीर्थ स्थलों को भी पर्यटन बनाते जा रहे है, जो कि नहीं होना चाहिए. तीर्थ स्थल भक्तों के लिए होते है, टूरिस्ट के लिए नहीं. जब बहुत ऊँचाइयों पर चढ़ने लगोगे, तो वैसे वैसे धक्के भी पड़ने लग जाएंगे. जब जब आगे बढ़ने की कोशिश करोगे कोई न कोई आएगा, निचे गिराने की कोशिश करेगा, आपको पीछे धकेलने की कोशिश करेगा. हमें किसी पर ध्यान दिए बिना, अपने भोलेनाथ का स्मरण करते हुए अपना कर्म करते हुए आगे बढ़ते रहना है. दैत्य/राक्षस सभी देवताओं के दुश्मन रहें होंगे, उन्हें बैकुंठ चाहिए था, किसी को इंद्र का सिंहासन चाहिए था, किसी को ब्रह्मा का सिंहासन चाहिए था. पर किसी को भोलेनाथ का कैलाश नहीं चाहिए था. क्योंकि उन्हें भी शिव का सिंहासन नहीं, शिव के चरण चाहिए थे, यदि चरण मिल जाएंगे तो सबकुछ मिल जाएगा. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम 🙏🙏
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