
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
आज की कथा शंकुकर्ण एवं कपर्दीश्वर महादेव पर आधारित रही. शिव नाम की जोत जगाने के लिए कोई आडम्बर की जरुरत नहीं होती, बस मन में शिव नाम का उच्चारण करने के आवश्यकता होती है. आप जितना जितना नाम स्मरण करेंगे, आपका शिव पर विश्वास उतना प्रबल होता चला जाएगा. यदि किसी बस के ड्राईवर से जान पहचान है, तो आपके घर के पास में बस रोक देता है, यदि शासकीय कार्यालय में कोई आपका जान पहचान का है तो वहां आपको ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ता, आपका काम जल्दी हो जाता है. यदि आपकी थोड़ी सी पहचान महादेव से होती है, दुःख ज्यादा समय तक जीवन में नहीं रहता वह आपको ज्यादा तकलीफ दिए बिना आपके जीवन से दूर चला जाता है. संसार में जब जन्म होता है, दुनियां में जब आते है, तब अकेले ही आते है. दुनियां से जब विदा होते है तब भी हम अकेले ही जाते है. इस दुनियां में जब रहते है तो संघर्ष हो या मेहनत हमें अकेले ही करनी है. जब संघर्ष का समय रहे, तब घबराना नहीं, शिव पर विश्वास कर के मेहनत करते रहे आपका समय अवश्य ही परिवर्तित होता है. स्कंधपुराण, लिंगपुराण, शिवपुराण, कुर्मपुराण में शंकुकर्ण नाम के एक व्यक्ति का प्रसंग आता है. शंकुकर्ण नाम का एक व्यक्ति था वह काशी विश्वनाथ के मंदिर में जो निर्माल्य (शिवजी पर चढ़े हुए बेलपत्र, पुष्प) को उठाता, अपने शीश पर लगाता एवं उसे गंगा जी में विसर्जित करता है. कथा में विवरण प्राप्त होता है जो भी शिवजी पर से निर्माल्य को सम्मान पूर्वक अपने शीश पर लगाकर सही जगह विसर्जित करता है, उसके अन्दर एक ऐसा बल उत्पन्न हो जाता है, जब वह किसी पर दृष्टि भी डाल देता है तो उसका भी उद्धार हो जाता है. एक बार शंकुकर्ण जा रहा था, तभी देखा उसके पीछे पीछे कोई चल रहा था, जिसके शरीर पर कहीं मांस था कही पर नहीं था. शंकुकर्ण ने पूछा तुम कौन हो? वह कहने लगा मैं पिशाच हूँ. मैं एक ब्राहमण था, परन्तु मैंने कभी भगवान पर विश्वास नहीं किया. इस लिए पिशाच की योनी मिली है. शंकुकर्ण पूछने लगा अविश्वास से पिशाच योनी प्राप्त हुई? वह कहने लगा हां, एक बार अपने परिवार के बहुत कहने पर मैं परिवार को लेकर एक देव स्थान पर गया. वहां प्रशाद के साथ एक बेलपत्र दिया था. मैंने प्रशाद तो ग्रहण कर लिया, परन्तु बेलपत्र को वहीँ निचे फेंक दिया एवं पैरों तले रौंदते हुए, अपशब्द कहने लगा. जब म्रत्यु हुई, यमदूत लेने आये, मुझ पर रस्सी डाली, पर रस्सी में मैं पकड़ में नहीं आ रहा था. मैं बिना किसी बंधन के यमदूतों द्वारा ले जाया गया. यमराज ने चित्रगुप्त से मेरे कर्म जानने चाहें तब ज्ञात हुआ, मेरे द्वारा कभी कोई दान, पुण्य, नहीं किया गया, ब्राहमण कुल में जन्म लिया फिर भी ईश्वर में कभी आस्था नहीं थी. अंतिम समय में एक बार प्रसाद के रूप में बेलपत्र हाथ में आया, उसे स्पर्श किया था, उसी के प्रभाव से यमदूत स्पर्श नहीं कर पा रहे थे. हे, शंकुकर्ण महाराज, चूँकि बेलपत्र का अपमान किया, शिव पर विश्वास नहीं किया इसलिए मुझे पिशाच योनी में आना पड़ा. शंकुकर्ण महाराज ने कहा – हे पिशाचराज, आप मेरे पीछे क्यों आ रहे हो, इसके पीछे क्या मंशा है? पिशाच कहने लगा ; हे शंकुकर्ण, आप महान शिव भक्त है, आप कोई उपाय बताइये, जिससे मैं इस योनी से मुक्त हो सकूँ. शंकुकर्ण द्वारा कहा गया हे पिशाचराज! काशी की इस भूमि पर शिवजी का एक गण रोज आता है, जिसका नाम है कपर्दी. यह गण शिवजी की जटा का श्रृंगार करते है और यदि पिशाचयोनी में तुम मुझे देख पा रहे हो, तो कपर्दी को भी पहचान लोगे. तुम उनके पास जाओ. वह पिशाचराज प्रतिदिन कपर्दी की प्रतीक्षा अलग अलग स्थान पर करने लगा. एक दिन पिशाचराज ने कपर्दी गण को देखा. उनसे मिला, नमन कर अपनी सारी बात बताई एवं निवेदन किया मेरे उद्धार का कोई उपाय बताइये. मेरे द्वारा अपमान हुआ है बेलपत्र का, परन्तु आप उपाय बताइए कैसे मेरा उद्धार हो सकता है. एक दिन पश्चात कपर्दी ने बताया जिस स्थान पर बैठकर शंकुकर्ण बैठकर शिव की आराधना करते है, उस स्थान पर मैं एक शिवलिंग का निर्माण करूँगा. जब उस शिवलिंग पर शंकुकर्ण पूजन करने के लिए आये तब उनके हाथ में जो बेलपत्र हो उसका दर्शन कर लेना. कपर्दी के प्रयास एवं पूजन से प्रसन्न हो शिवलिंग से भोलेनाथ प्रकट हुए. भोलेनाथ ने कहा हे कपर्दी आजतक तुमने मेरी जटाओं का शृंगार किया था, आज तुमने मेरे शिवलिंग का निर्माण कर पूजन किया है. तुम्हारी क्या मनोकामना है. कपर्दी ने कहाँ हे भोलेनाथ ऐसी कृपा करों जो भी पिशाच योनी में हो उसका कल्याण हो सके. महादेव ने एक कुंड में गंगा को प्रकट किया. एवं कहा जो भी इस कुंड में स्नान करता है एवं इस शिवलिंग का पूजन अर्चना करता है वह कभी पिशाच योनी में नहीं जाएगा, एवं उसकी 71 पीढ़ियों में कोई पिशाच योनी में होगा वह भी मुक्ति को प्राप्त होगा. इस तरह से शिवलिंग का दर्शन एवं कुंड में स्नान कर वह पिशाचराज पिशाच योनी से मुक्त हुए एवं नंदी के साथ शिवलोक को प्राप्त हुए. काशी में एक शिवलिंग है जिसका नाम है कपर्दीश्वर महादेव. पिशाचमोचक कुंड के पास यह मंदिर स्थित है. ऐसी मान्यता है. यदि इस शिवलिंग के दर्शन नहीं किये जाते है तो 12 ज्योतिर्लिंग दर्शन का पुण्य प्राप्त नहीं होता है. ब्राहमण वह श्रेष्ठ है, जो यजमान के घर जाकर पूजा, आराधना, नौ गृह की पूजा, मंडल की पूजा, गणेश आराधना, आमंत्रण, आदि करवाता है. जो आस्था, विश्वास एवं जिस से भाव से एक यजमान पूजा कर रहा है, भगवान पर जिस विश्वास से वह पूजन कर रहा है उससे कम से कम चार गुना विश्वास कर के ब्राम्हण को पूजन करवाना चाहिए. ऐसा ब्राहमण कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखता, हमेशा आगे बढ़ता जाता है. हज़ारों अश्वमेघ का फल प्रदान कर देता है – केवल एक बेलपत्र के पौधे को लगाना एवं देखभाल करना. गुरुदेव द्वारा भक्तों से संकल्प दिलवाया गया सावन के महीने में एक बेलपत्र का वृक्ष जरुर लगाएं. कहाँ लगाना है यह आप तय करें, बस ध्यान रखें कि बेलपत्र की देखभाल अच्छी से हो पाए एवं वह सुन्दर वृक्ष बन पाएं. पुरे सावन के महीने में एक नियम कोई भी बनाएं. जैसे प्रतिदिन दो लोटे जल चढ़ाना, या एक चावल का दाना अर्पित करना, या एक बेलपत्र अर्पित करना या प्रतिदिन शिखर दर्शन करना आदि. कोई भी एक नियम लेवें. एवं उस नियम का पूरी कड़ाई से पालन करें. पुरे माह उस नियम का यथावत पालन करें. सावन माह समाप्त होने पर आपकी कामना अवश्य पूरी होगी. यदि किसी मंदिर में जाए पुष्प न हो, बेलपत्र न हो तो अपनी वाणी का पुष्प अर्पित करना चाहिए. ज्योतिर्लिंग मंदिरों में जहाँ ज्यादा भीड़ होती है, वहां गर्भ गृह में प्रवेश नहीं हो पाता है. ऐसी स्थिति में हम अपने मुह से जोर से श्री शिवाय नमस्तुभ्यम बोलकर वाणी रूप से भी पुष्प अर्पित कर सकते है
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