
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
मनुष्य की देह अपने आप में ही महत्वपूर्ण होती है. 83, लाख 99 हजार, 999 योनियों में जन्म लेने के पश्चात मनुष्य को मनुष्य की देह मिलती है. मनुष्य प्रतिदिन 21600 सांस प्रतिदिन लेता है. इनमें से यदि मनुष्य मात्र 600 सांस शिव नाम के लिए लेता है. प्रभु भक्ति के लिए लेता है तो शेष 21000 सासें स्वयं पवित्र हो जाएंगी. शिव भक्ति के लिए आवश्यक नहीं कि आपको संन्यास लेकर रहना पड़ेगा, घर छोड़ कर कहीं जंगल में उपासना करना पड़ेगा. आप शिव भक्ति, शिव की उपासना अपने गृहस्थ जीवन में भी कर सकते है. किसी तीर्थ में जाते है, या संन्यास में जीवन जीते है तो आपको साधना, उपासना ज्यादा करनी पड़ती है. जबकि गृहस्थ जीवन में यदि आप थोड़ा भी शिव स्मरण कर लेते है, तो जीवन में आपको कहीं भटकना नहीं पड़ेगा. थोड़े मात्र से भी शिव रीझ जाएंगे. विद्वत्ता में भी अहंकार आ जाता है. यदि आप कहें मैं श्रेष्ठ हूँ, तो यह आपकी विद्वत्ता हो सकती है, लेकिन यदि आप कहें केवल मैं ही श्रेष्ठ हूँ तो यह आपका अहंकार होता है. नारद जी को अहंकार आ गया कि मेरे बराबर कोई भजन, उपासना नहीं कर सकता. नारद जी ने विष्णु जी से कहाँ प्रभु मैं दिन रात भजन, प्रभु नाम स्मरण करने में रहता हूँ मुझसे बड़ा कोई भक्त नहीं है. क्या कोई है जो मुझसे ज्यादा भजन, प्रभु नाम स्मरण करता हो. विष्णु जी ने नारद जी को एक खीर का कटोरा दिया कहाँ यह कटोरा शिव जी को दे आना, पर ध्यान रखना इसमें से एक बूंद भी निचे नहीं गिरना चाहिए. वहां से आओगे फिर मैं तुम्हारे प्रश्न का जवाब दूंगा. नारद जी कटोरा देकर वापिस आए. विष्णु जी ने पूछा जब कटोरा ले जा रहे थे तब प्रभु स्मरण किया, भगवान का नाम सुमिरन किया. नारद जी ने कहाँ – प्रभु यदि स्मरण करता, या जपते हुए जाता, या भजन करते जाता तो खीर ढूल जाती, इसलिए नहीं कर पाया. विष्णु जी ने कहाँ – नारद, तुमसे ज्यादा भक्त तो वो सांसारिक लोग है, जो अपने दूकान पर जाते समय, खेत में जाते समय भी प्रभु का नाम स्मरण करते जाते है. इसलिए एक सांसारिक व्यक्ति के लिए प्रभु को पाना ज्यादा सुलभ है. संत तुकाराम ने घर पर रहकर ही हरी विट्ठल को प्राप्त किया. मीरा ने कृष्ण भक्ति अपने घर पर रहकर प्राप्त की. रामकृष्ण परमहंस ने माता जी की आराधना सांसारिक जीवन में रहकर ही प्राप्त की. करमा बाई ने जगन्नाथ को प्राप्त किया, प्रहलाद, ध्रुव ने विष्णु भक्ति को प्राप्त किया. यह सभी अपने गृहस्थ जीवन में जीते हुए ही प्रभु भक्ति को प्राप्त हुआ है. इसलिए ऐसा नहीं है की शिव भक्ति को प्राप्त करने के लिए आपको संन्यास ही लेना पड़ेगा. आप गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी, अपने परिवार के साथ रहते हुए भी प्रभु भक्ति को प्राप्त कर सकते है. शादी में आप बेटी को कोई दहेज़ दे रहे है या नहीं. चाहे कुछ मत देकर भेजों. परन्तु ध्यान रखें बेटी को इतना शिक्षित जरुर करना कि उसे कभी जीवन में पीछे मुड़कर देखना न पड़े. और सभी बेटियों को भी ध्यान रहे. अपने माता पिता से कभी अपने कन्यादान का अधिकार मत छिनना. एक अच्छी शिक्षा आपको किसी अच्छे व्यक्ति के आदर्शों पर चलकर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है. एक अच्छा शिक्षित व्यक्ति कभी भी आलोचनाओं में नहीं पड़ता. सोशल मीडिया में भी कभी आपके सामने कोई गलत पोस्ट भी आये तो उस पर कमेन्ट करने के दौरान अपने शब्द गलत न निकाले. हमें अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए. भगवान नटराज की मूर्ति में उनके पाँव के निचे एक पुरुष लेटा होता है, एवं भगवान शिव उस पर नृत्य कर रहे है. कौन है यह पुरुष और क्यों लेटा होता है यह शिव के चरणों में ? कुछ ऋषियों में भगवान विष्णु एवं शिव में श्रेष्ठ कौन है इसका विवाद हुआ. यह विवाद बहुत ज्यादा बढ़ गया. अंत में कुछ ऋषियों ने आपस में तय किया भगवान विष्णु श्रेष्ठ है, एवं वे ऋषि शिव निंदा करने लगे. वे शिव पर क्रोध करते, शिव से द्वेष करने लगे. उनके इस द्वेष एवं इर्ष्या भाव से एक पुरुष प्रकट होता है इस पुरुष का नाम अपस्मार होता है. शिव निंदा से उत्पन्न वह अपस्मार शिव का संहार करने के शिव धाम पहुँचता है. अपस्मार पुरुष ने जैसे ही शिव पार्वती का दर्शन किया, दर्शन करते ही उसके मन में भक्ति भाव जाग्रत हो गया. भक्ति भाव वश वह रोने लगा. उसकी आँखों से आसू बहने लगें. शिवजी का ध्यान गया उस पुरुष पर की एक पुरुष आया है और वह रो रहा है. शिव ने ध्यान लगा कर सारी बात जान ली. शिवजी ने नृत्य करना प्रारम्भ किया. पुरुष ने सोचा मैं क्या करू कैसे प्रभु की चरण वंदना करू. वह भोलेनाथ के चरण पकड़ने लगा. एवं निचे लेट गया. शिव उसी पर नृत्य करने लगे. भगवान शिव के चरणों से बार बार होने वाले से प्रहार से पुरुष अपस्मार अपनी गति को प्राप्त होता है. एवं भगवान शिव नटराज रूप में पूजित होने लगे. (यह समस्त जानकारी www.gkcmp.in पर उपलब्ध है) गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी कहते है, शिव की भक्ति, शिव की आराधना कभी खाली नहीं जाती है. जिसने एक बार भी कभी जीवन में शिव की उपासना, मंत्र जाप, भजन किया है, उसका फल भी आपको कभी न कभी प्राप्त होता ही है. माँ के गर्भ से जब जन्म लेते है तो हमारा कोई दुश्मन नहीं होता. तो यह दुश्मन बनते कैसे और कब है? दुश्मन कभी आपके नहीं होते है, दुश्मन आपके व्यापार, आपकी प्रतिष्ठा, आपके सम्मान के होते है. गुरुदेव कहते है आपकी प्रसिद्धि देख कर, आपकी उन्नति देखकर आपके दुश्मन स्वमेव उत्पन्न होने लगते है. परिवार में कभी किसी से कोई गलती हो जाए तो कभी बाहर वालों के सामने या छोटो के सामने डांटना नहीं चाहिए. यदि पत्नी से गलती हो जाए तो बाद में एकांत में समझाना चाहिए. बहु से कोई गलती हो जाए तो सांस को चाहिए कि बाद में एकांत में अपनी बहु को शान्ति से समझाना चाहिए. गलती सबसे हो सकती है. यदि हम बाहर वालों के सामने हम झिड़क देंगे तो उसका सम्मान, उसकी प्रतिष्ठा बाहर वालों के सामने धूमिल हो जाएगी. और फिर बाहर वाले भी उसी तरह का व्यवहार करने लगेंगे. कुर्म पुराण में एक प्रसंग आता है. एक राजा था दुर्जय. दुर्जय एवं भामनी पति पत्नी थे. दुर्जय की पत्नी शिव उपासक थी. एक दिन दुर्जय के मन में आया कि मैं शिकार के लिए जाता हूँ. वह घोड़े से निकले, घूमते घूमते वह यमुना तट पर पहुंचा. यमुना तट पर देखा कोई सुन्दर स्त्री यमुना नदी में जल क्रीडा कर रही है. उसने स्त्री को पूछा तुम कौन हो, कहा रहती हो. यहाँ क्या कर रही हो. वह स्त्री मौन रही. कुछ भी नहीं बोली. दुर्जय पुनः पूछने लगा. वह कहने लगी मैं उर्वशी हूँ, अप्सरा हूँ, देवलोक रहती हूँ. आपस में बात करते करते दुर्जय मोहित हो गया एवं वह उर्वशी के साथ वहीँ रमण करने लगा. इधर पति की अनुपस्थित्ति में पत्नी भामनी राज्य की देख रेख करने लगी. देखते देखते 1 वर्ष बीत गया, वह वापिस घर को नहीं आया. भामनी राज्य संभालने लगी, प्रजा का पालन पोषण करने लगी. भामनी प्रतिदिन शिव पूजन करती विचार करती एक वर्ष बीत गया मेरे पति कहाँ चले गए. सभी ढूढ कर परेशान हो गए. अब भामनी को परिवार शिव मंदिर भी जाने नहीं देते. वह घर पर ही एक बेलपत्र बुलवाती. अपने हाथ में बेलपत्र रखकर उसी पर जल अर्पित कर देती. एवं अपनी सहेली से कहकर शिवमंदिर में अर्पित करवा देती. एक दिन दुर्जय को सुध आई, वह उर्वशी को कहने लगा मैं अपने राज्य जाना चाहता हूँ. उर्वशी वचन लेती है तुम वापिस आओगे. दुर्जय वापिस अपने राज्य आता है. भामनी से मिलता है. वह पूछने लगी, स्वामी एक वर्ष बीत गया आप कहाँ रहे. दुर्जय लज्जित हुआ. भामनी उसकी मनोदशा जान गई. उसने कहा आपसे जो भी कर्म हुआ उसके प्रायश्चित के लिए आपको मांडव ऋषि के पास जाना चाहिए. वह आश्रम में पंहुचा एवं शिव मंत्र लेता है. तभी उसकी नजर एक गन्धर्व के गले में पड़ी सुन्दर माला पर पड़ती है. वह विचार करता है, यह माला में उर्वशी कितनी सुन्दर लगेगी. यह सोच कर वह माला लेकर उर्वशी के पास पहुचता है. उसकी मनोदशा जानकार उर्वशी अब एक भयंकर रूप धारण कर लेती है. कहती है तुम पूजन करते हुए भी प्रेमासक्त रहे. तुम्हे शिव भक्ति में जाना चाहिए. ऐसा रूप देखकर दुर्जय पुनः मांडव ऋषि के आश्रम में पहुचकर शिव भक्ति को प्राप्त करता है. अपने किये कर्म के लिए क्षमा मांगते हुए, काशी भूमि पर विश्वनाथ का पूजन करता है. बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से पुनः अपने राज्य एवं पत्नी के साथ शिव भक्ति में रमते हुए अपना जीवन यापन करने लगा. घर पर शिवलिंग होना चाहिए. यदि घर में शिवलिंग है तो ऐसे घर में कभी कोई वास्तुदोष, कालसर्प दोष, कोई जादू टोना आदि काम नहीं करता है. घर में छोटा सा शिवलिंग अवश्य होना चाहिए. यदि आप बाहर जा रहे हो, दो दिन, तिन दिन, चाहे एक महीना या एक साल भी घर से बाहर रहना हो, केवल एक चावल एवं एक बेलपत्र रखकर अर्पित कर चले जाएं. इससे कोई दोष नहीं होगा. श्रावण के महीने में जो शिवरात्री आती है, उस दिन ऑनलाइन अभिषेक का आयोजन किया जाता है. उस अभिषेक के दौरान पुरे परिवार को पुरे आदर भाव से, भक्ति भाव से पूजन में सम्मिलित होना चाहिए. पूजन की अधिक जानकारी बाद में उपलब्ध कराई जाएगी. आज षष्टम दिवस की कथा संपन्न होती है. आज की रात्री को शिवरात्री माना जाता है. रात्रि का कुछ समय शिव भजन, मंत्र साधना में अवश्य बिताएं. भजन, जाप की सुविधा ऐप पर उपलब्ध है. श्री शिवाय नमस्तुभ्यं 🙏🙏🙏
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