
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
शिव – जो गर्भ में पल रहे शिशु को भी गुरु मंत्र देता है. और अंत में तारक मंत्र देकर संसार से मुक्त करता है. संसार में जन्म लेना अलग बात है, और संसार में रहकर शिव का स्मरण करना अलग बात है. शिव का स्मरण मात्र ही करना आपको शिव तक पहुचाता है. इसमें कोई आडम्बर नहीं करना है, कोई दिखावा नहीं करना है. भगवान शंकर की भस्म जब कोई भक्त अपने कंठ, गले, ह्रदय, मस्तिष्क पर जब लगाते है. उस भस्म का एक कण किसी ऐसे गाँव में गिर जाए जहा कोई शिव भक्त नहीं तो भी उस गाँव की रक्षा करने शिव स्वयं आता है. मुक्ति हमसें कितनी दूर है? शिवमहापुराण कथा कहती है, मुक्ति केवल हमसे तिन कदम की दुरी पर होती है. उस पथ पर कोई और नहीं चल सकता, हमें मुक्ति पाना है तो हमें ही चलना पड़ता है पहला कदम – विश्वास दूसरा कदम - संयम तीसरा कदम - विवेक इन तिन क़दमों के द्वारा यदि चल लिए तो आपको मुक्ति मिलती ही है. म्रत्यु लोक में जन्म लेने के बाद यदि आपका विश्वास शिव पर नहीं है तो मुक्ति मिलना कठिन है. एक शिशु जब अपने बच्चे को दूध पिलाती है, तब बच्चे के मन में कोई सवाल नहीं रहता, कि दूध में जहर तो नहीं है, दूध खराब तो नहीं है, आदि क्योंकि उसके मन में अपनी माँ के प्रति पूर्ण विश्वास रहता है. यही विश्वास अपने शिव पर होना चाहिए. बिना शिव पर विश्वास के मुक्ति नहीं मिल सकती. यह विश्वास की ऐसी स्थिति होती है, जब कोई ताने भी मारे, कोई बाते भी सुनाएं पर अपने शिव पर मन नहीं हटता, शिव पर से विश्वास नहीं हटता. एक पौधा लगाते है, कुछ दिन तक जब उसमें नई पत्तियां आने लगती है, तब तक तो बड़ा अच्छा लगता है, खाद पानी से पौधे की सेवा करते है. बार बार उन नई पत्तियों को देखने के लिए जाते है. परन्तु जब देखते है उसमें पत्तियां खराब हो रही है है तो उसे देखना भी बंद कर देता है. शुरू शुरू में व्यक्ति गुरु को बड़े मन से पूजता है, कई बार गुरु के धाम पर जाता है, पर जैसे ही बार बार अपने गुरु की आलोचना कभी कानों में पड़ने लगती है. वह भी गुरु को त्याग कर सांसारिक लोगो की बातों में आ जाता है. आजकल शिव की भक्ति भी करते है तो लोग ताने मारते है, भला बुरा कहते है, यहाँ तक की कोई उपाय करने लगते है तो भी ताने मारते है, ऐसे में यही सोच कर रखिये ये सब ताने हम किसी और के लिए नहीं सिर्फ और सिर्फ अपने शिव को पाने के लिए सुन रहे है. एक माँ का विश्वास अपने बेटे पर होता है, बेटा कहीं भी रहे, चाहे उससे दूर ही क्यों न रहता हो, अंत में अपनी संपत्ति अपने बेटे को ही देकर जाती है. यहाँ तक कि जब बेटा न भी आ पाता हो तब भी अपने बेटे को ही याद करती है, वह किसी और को अपना बेटा नहीं बनाती. यह विश्वास अपने शिव पर भी होना चाहिए. चाहे सुख दुःख आता रहे कैसे भी पल आए जीवन में अपने शिव पर अपने गुरु पर विश्वास बनाए रखना चाहिए. मुक्ति के लिए दुसरा कदम है – संयम जीवन में स्वयम में एक संयम होना चाहिए. कई बार जीवन में एक बार में ही सफलता नहीं आती है, ऐसी स्थिति में संयम होना चाहिए. एक घड़ा पानी से भरा लेकर आप जाते है तो उसमें से पानी ही छलकता है. यदि घड़ा दूध से भरा है तो उसमें से दूध छलकेगा. जो भी घड़े के भित्तर होता है वह घड़े से छलकता है. यही संस्कारों के साथ है. यदि किसी ने कुछ ज्यादा बोल दिया हम भी अभद्र भाषा बोलने लगते है जो कि गलत है. हमारी भाषा शैली हमारे शब्द हमारे संस्कारों का परिचय देते है. यदि हम गाली देते है, तो यह दर्शाता है कि हमारे भीतर गालियाँ भरी हुई है. क्योकि बाहर तो वहीँ आता है जो हमारे भीतर होता है. एक संयम होना चाहिए. जिसे व्यक्ति ने अपनी वाणी पर, अपने मन पर आपनी पाँचों इन्द्रीयों पर नियंत्रण, संयम कर लिया वह मुक्ति को अवश्य पाता है. इसी तरह मुक्ति को पाने के तीसरा कदम होता है – हमारा विवेक, हमारी बुद्धि आजकल कोई व्यक्ति किसी के घर जाता है, किसी परिचित से मिलता है या किसी तीर्थ में भी जाता है तो बुराई करने लगता है. इस दौर में अच्छाई नहीं देखी जाती, हर किसी में बुराई देखी जाती है. किसी मंदिर में, किसी शिवालय में, किसी तीर्थ में जाकर यदि आप कुछ अच्छाई देख लेते है, तो आपके अन्दर की बुराई शिव स्वयम साफ़ कर देते है. किसी के लिए भी प्रथम गुरु उसकी माँ होती है. यदि माँ स्वयं रामायण का पाठ कर रही है, तो बच्चों में संस्कार भी वैसे आते है. यदि माँ खुद ही मोबाइल में व्यस्त है, टीवी में व्यस्त है तो बच्चों में संस्कार कैसे आयेंगे. बच्चों को पालने के लिए आया रखते है, और कुत्ते के बच्चे को स्वयम पालते है. यदि हाथों में कुत्ते के बच्चे की बजाय हाथ में कोई पुराण, कोई कथा प्रसंग की पुस्तक हाथ में लेंगे तो आने वाली पीढ़िया भी शिव भक्ति को प्राप्त होती चली जाएगी. जब दुःख की घड़ी आती है तब कोई साथ देने वाल नहीं होता है. इसलिए शिव से एक विनती जरुर करना, हे भोलेनाथ अंतिम समय में मेरी हाथ में इतनी शक्ति जरुर देना की अपने स्वयं के कार्य खुद कर सकू. मेरा बुढापा किसी पर आश्रित होकर न गुजरे. बाकी जीवन में कितनी भी तकलीफ आएगी, मेरे महादेव मैं तेरा नाम लेकर सब पार कर जाऊँगा. गुरु तुम्हे राह तो दिखा सकता है, परन्तु उस राह पर चलना तुम्हे स्वयं को ही है. आपके स्थान पर गुरु नहीं चल सकता है. गुरुदेव द्वारा कई उपाय बताए गए है, संतान प्राप्ति हेतु, पशुपति नाथ व्रत आदि सब रास्ते है जो गुरुदेव द्वारा बताए गए है, यदि हम चाहते है हमारी समस्या का समाधान हो तो उस रास्ते पर उस उपाय को करना तो हमें ही पड़ेगा. ना हमसफ़र ना हम नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का काटा हमीं से निकलेगा || हमारी समस्याओं का निदान, हमारी समस्याओं का हल कोई और नहीं हम से ही संभव होगा. आवश्यकता है तो बस अपने परिश्रम, अपनी मेहनत एवं शिव पर अटूट विश्वास की. इसी के दम पर हम अपनी सारी परेशानीयों का समाधान कर सकते है. गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी द्वारा आज कथा में विभिन्न उपाय भी बताए गए जिसमें पञ्च कन्हेर, पांच जगहों पर चन्दन आदि उपाय सम्मिलित है. आपकी सुविधा के लिए सभी उपाय Gurudev Pandit Pradeep Mishra App के ‘उपाय’ खंड में उपलब्ध रहेंगे. आप इन सभी उपायों को www.gkcmp.in पर भी देख सकते है. इस तरह आज सुन्दर दुसरे दिन की शिवमहापुराण कथा संपन्न होती है. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम 🙏🙏 हर हर महादेव 🙏🙏
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