
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
एक स्त्री के लिए उसका सबसे बड़ा गुरु उसका पति होता है. एक स्त्री के जीवने में यदि कोई उसका सबसे बड़ा गुरु होता है तो वह उसका पति होता है. क्योंकि वह समय समय पर उसको उपदेश भी देता है, सलाह भी देता है, वह पत्नी का ध्यान भी रखता है. लेकिन यदि कोई पति मदिरा पान, व्यवसन आदि में डूबा हुआ रहता है, तो वह गुरु तो नहीं, पर एक अच्छा पति भी नहीं बन पाता है. गुरु और शिष्य के बिच अनुशासन होना चाहिए. एक श्रेष्ठ गुरु शिष्य सम्बन्ध तभी स्थापित हो सकता है जब उनके बिच अनुशासन स्थापित होता है. गुरु के बताए हुए अनुशासन पर जब हम चलते है, तब सद्गुरु परमात्मा की भी ऐसी कृपा प्राप्त हो जाती है कि जीवन में ऐसा सिहासन प्राप्त हो जाता है कि फिर किसी आसन की कोई आस भी नहीं रहती. नारी के जीवन में स्त्री ने तिन लोगो की चरण अवश्य छूना चाहिए – अपनी सास, घर के वृद्ध एवं पति. इन तीनों के अतिरिक्त किसी के पाँव नहीं छूना चाहिए. यदि घर में कोई बुजुर्ग बीमार है, कष्ट मे है तो मंदिर में शिवजी को एक लोटा जल पिलाने की अपेक्षा उस बुजुर्ग की सेवा करना चाहिए. आजकल लोग जगत में गुरुओं की सेवा करने जाते है, और घर में अपने माता पिता की सेवा नहीं कर पाते. माता-पिता से बड़ा कोई गुरु नहीं होता है. गर्भ से लेकर, पालन पोषण करने तक, बड़ा होने तक, कई परेशानियों का समाधान करते है – हमारे माता-पिता. परिवार में जेठ, नंदोई आदि के चरण वंदन में स्पर्श नहीं करना चाहिए, थोड़ी दूर से ही चरण वंदन करना चाहिय. कोई कितना भी बड़ा सन्यासी, उपासक हो उसके चरणों का स्पर्श नहीं करना चाहिए. अपने पति एवं परमात्मा के अरितिक्त किसी के चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए नियत, निति एवं नियम जीवन में अपनी नियत एवं निति श्रेष्ठ बना कर चलाना चाहिए. एवं जीवन में एक नियम अवश्य बनाना चाहिए. चाहिए वह औरो के लिए कितना भी आसान या सरल नियम क्यों न हो. चाहे गौ माता को रोटी देना, पक्षियों को दाना डालना, चीटी को आटा देना, शिव को एक लोटा जल अर्पित करना जैसे नियम ही क्यों न हो. बस प्रयास करें नियम कोई भी हो उसका यथावत पालन करना चाहिए. नियत, निति एवं नियम श्रेष्ठ हो फिर चाहे कोई ताने भी मारे, भली बुरी बात ही क्यों न कहें. हमारा ध्यान वह कुबेरभंडारी रखता है. एक वह व्यक्ति जो संसार को त्याग कर कहीं एकांत में जीवन जी रहा है, बिना किसी परिवार के वह तो संत है ही, वह व्यक्ति भी संत है जो अपने परिवार के साथ रहकर, परिवार का ध्यान रखते हुए शिव नाम का स्मरण करता है, भगवान की भक्ति करता है, वह भी एक गृहस्थ संत है. लिंग पुराण के अंतर्गत 122 नंबर के अध्याय में एक सुन्दर प्रसंग आता है. एक सुदर्शन नाम के मुनि गृहस्थ आश्रम में जीवन में अपने परिवार एवं बच्चों के साथ जीवन यापन करते थे. एक दिन सुदर्शन की पत्नी ने अपने पति से निवेदन किया. स्वामी मैं अपने जीवन में परिवार में व्यस्त रहती हूँ. अपने परिवार की सेवा में रहती हूँ. मैं शिव की उपासना शिव की आराधना नहीं कर पा रही हूँ. कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे शिव को प्राप्त कर सकूँ. तब सुदर्शन मुनि ने कहा – कोई अतिथि जब भी अपने घर आए उस अतिथि की सेवा अपने हृदय से करना चाहिए. उसके जलपान की व्यवस्था ह्रदय से करें, आदर भाव सत्कार में कभी कोई कमी नहीं रखें. अतिथि की सेवा मात्र से भी आप शिव को प्राप्त कर सकते है. अब सुदर्शन मुनि की पत्नी ने ऐसा नियम बना लिया कि घर में कोई भी अतिथि आए उसका आदर, सत्कार करना है. समय अपनी गति से निकलता गया. एक दिन शंकर भगवान ने परीक्षा लेना चाही. भगवान शिव ने एक भिक्षुक का भेष रखकर सुदर्शन मुनि के द्वार पर गए. उन्होंने आवाज लगाईं हे माई ! द्वार पर भिक्षुक है, भोजन दे दे. सुदर्शन मुनि की पत्नी आई. निवेदन किया बाबा भोजन में थोड़ी देर है आप थोड़ी देर विश्राम करिए मैं अभी भोजन बनाती हूँ. सुदर्शन मुनि की पत्नी रोटी बनाने लगी. पहली रोटी बनाई बनाकर अलग रख दी. वह भिक्षुक का रूप रख कर बैठ शिव जी हसने लगे. सुदर्शन की पत्नी नाराज हो गई. हे भिक्षुक देव, मैं आपके लिए भोजन तैयार कर रही हूँ आप हंस रहे हो. वह भिक्षुक देव ने कहा – माई पहली रोटी आपने गौमाता के लिए बनाई है,परन्तु स्वयम के लिए, परिवार के लिए बड़ी रोटी बनाई और गौ माता के लिए छोटी रोटी बनाई. माई को आभास हुआ वह अब तक कितना बड़ा अपराध करती आई है. उसे खेद हुआ. उसने क्षमा मांगी. अब भिक्षुक को भोजन कराने लगी तभी द्वार पर सुदर्शन मुनि स्वयं आ गए, उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज लगाईं हे देवी हम द्वार पर आए. द्वार खोलों. पत्नी ने आवाज लगाईं स्वामी अभी अतिथि देव को भोजन करा रही हूँ, कृपया आप प्रतीक्षा करें. मुनि सुदर्शन को बड़ा आश्चर्य हुआ अतिथि को भोजन करा रही है, एवं मुझे प्रतीक्षा करने को कहा. संध्या काल हो रहा था. अतिथि ने कहा हे माई रात्री हो चली है, अब मैं इस समय कहा जाऊँगा. क्या मैं यही पर विश्राम कर सकता हूँ. सुदर्शन की पत्नी ने कहा जी भिक्षुक देव, अतिथि देव आप यहीं रात्री विश्राम कर सकते है, आप सुबह विदा ले सकते है. वह शिव रूप में खड़े भिक्षुक देव ने कहाँ माई परनारी एक कक्ष में नहीं रहा जाता. आप मेरी माता समान है, पर इस कक्ष में साथ में नहीं रह सकते. मैं बाहर रुक जाता हूँ. माई ने कहा हे महानुभाव आप अतिथि है. आप घर के भीतर रुकिए. मैं बाहर अपने पति के साथ विश्राम कर लुंगी. आप शान्ति से यहाँ विश्राम करिए. पति पत्नी दोनों घर के बाहर रात्री गुजारने लगे. सुबह हुई. मुनि सुदर्शन की पत्नी ने दरवाजे से आवाज लगाईं - अथिति देवौ, महादेवौ. हे अतिथि देवों, महादेवौ. भिक्षुक ने रूप धरे शिव. अपने वास्तविक स्वरूप में आकर दरवाजा खोलकर माई को दर्शन दिए. माई बारम्बार प्रणाम करने लगे. उसे विश्वास हुआ, मेरे पति मेरे गुरु ने कहा था, अतिथि की सेवा करना शिव अवश्य प्राप्त होते है. उनके दिखाई पथ पर चलने से ही मुझे आज शिव प्राप्त हुए है. शिव पर किया विश्वास आनंद प्रदान करता है. ज्ञान देना आसान है, सोशल मीडिया पर कई वीडियो आते है, आज प्रदोष है – यह अपराध मत करना, शिव का ऐसा पूजन मत कर लेना, शिव की ऐसी पूजा मत कर लेना. यह मत चढाओं, वह मत चढाओं पाप लगेगा. गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी कहते है, श्रावण आ रहा है कई लोग शिव की पूजा में डराते है, ऐसी पूजा मत करना अनर्थ हो जाएगा, यह मत चढ़ाना गलत हो जाएगा. हमारा शिव आडम्बर नहीं देखना, वह तो भोलानाथ है. आप जैसी भी पूजा करो, पुरे भाव से करों. शिव स्वीकार करता है. कुबेरेश्वर धाम आने पर पांच कंकर चुनकर, उन्हें शिव मानकर पूजा करें, उसमें से एक कंकर अपने साथ ले जाएं. वहीँ बैठकर 108 बार श्री शिवाय नमस्तुभ्यम मंत्र का जाप करते रहें. शिव आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करता है. जिस शिष्य को गुरु मंत्र प्राप्त होता है. ऐसे में यदि वह शिष्य कोई गलत कार्य करता है – तो उसका अपराध भाग गुरु को भी भोगना पड़ता है. ऐसे में जो गुरु होता है, वह भी सोच समझकर ही अपना शिष्य बनाते है. दारुका नाम का एक असुर हुआ, उसने ब्रह्मा जी की उपासना की. एवं वर माँगा मैं कभी मरू ना. ब्रह्मा जी ने कहा नहीं यह तो संभव नहीं है, कोई दुसरा वर मांगों. दारुका ने कहाँ मैं मरू तो किसी स्त्री के हाथ मरू. ब्रह्मा जी ने वरदान दे दिया. दारुका नाम का वह देव उत्पात मचाने लगा. सभी देव शिवजी के पास पहुचें. भोलेनाथ समाधि में थे. देव प्रार्थना करने लगें. शिवजी समाधि से जागे कारण पूछा आने का. सभी देवों ने अपनी व्यथा बताई. शिव जी ने जो विष पिया था, पार्वती ने उसे निचे नहीं उतरने दिया. कंठ में बैठकर माता पार्वती ने विष को रोक दिया था. शिवजी ने पार्वती को निमंत्रण दिया. आपके भक्तों पर विपदा आई है, उनकी रक्षा करने के लिए आप पधारों अब जो पार्वती जी आई तब विष के प्रभाव से उनका पूरा शरीर नीला पड़ चूका था. आँखे लाल एवं भयंकर रूप धारण कर प्रकट हुई. माँ कालका का रूप धारण कर माता पार्वती ने दारुका नाम के राक्षस का संहार किया. माता का रौद्र रूप था, क्रोध था. दारुका का वध करने के बाद भी माता का क्रोध शांत नहीं हो रहा था. माँ काशी की तरफ बढ़ने लगी. देवताओं ने शिवजी से प्रार्थना करी. प्रभु माँ का क्रोध शांत करिए. शिव जी ने एक बच्चे का रूप धारण कर काशी में के जगह जोर जोर से किलाकारी मारकर रोने लगे. माता ने जैसे ही उस शिशु को देखा. माता का वात्सल्य जागत हो गया, उन्हें लगा भूका होगा, वे चुप करने के लिए स्तनपान कराने लगी. शिव रूप धारण करने वाले वह शिशु ने स्तनपान के दौरान क्रोध को भी धीरे धीरे अपने अन्दर खीचने लगे. जैसे जैसे क्रोध कम होने लगा माता शान्त होने लगी. माता का वह क्रोध अपने अन्दर खीचने से वह शिशु 52 खंड में बटकर अलग अलग हो गए. वे 52 खंड आज 52 भैरव के रूप में पूजे जाते है. मानव शरीर जो प्राप्त हुआ है, यह बहुत किमती है. इसे व्यर्थ न जाने दे. ना जाने कितने जन्म हमने पशु पक्षियों, किट पतंगों की योनी में लिए उसके बाद हमें यह योनी प्राप्त हुई है. इस योनी में अपनी मेह्नत एवं शिव की भक्ति से हम जीवन की सर्वश्रेष्ठ उंचाई प्राप्त कर सकते है. जो गौ माता रोड पर बैठी रहती है, उनके गले में बाँधने के लिए रेडियम श्री कुबेरेश्वर धाम समिति द्वारा उपलब्ध कराए जाएंगे. ताकि रात्रि में चलने वाले वाहनों को वे गाए दूर से दिखाई दे. आप यह रेडियम निशुल्क प्राप्त कर सकते है. इसी के साथ आज तृतीय दिवस की श्री शिव गुरु श्री शिवमहापुराण कथा विराम लेती है. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम हर हर महादेव 🙏🙏
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