
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
एक शब्द है लगाव और दूसरा शब्द है विश्वास. ये दोनों शब्द आपके और हमारे जीवन को सार्थक करते है. आपका लगाव किससे है, और विस्वास किस पर करते है, यह आप ही तय कर सकते है. यदि आपका लगाव एवं विश्वास पूर्ण रूप से शिव पर है, तो एक न एक दिन शिव करुणा करता है, दया करता है. यह आवश्यक नहीं कि आप अपने परिवार, कुटुंब, रिश्तों में लगाव न रखें, सांसारिक जीवन है. सबसे लगाव रखना पड़ेगा. परन्तु एक लगाव हमारा शिवालय से भी होना चाहिय, मंदिर से भी होना चाहिए और हमारे सनातन धर्म से भी होना चाहिए. शिव शंकर से किया गया लगाव एक न एक दिन अवश्य फल देता है. वह अवश्य फलीभूत होता है. मानते हैं विज्ञान ने बहुत तरक्की की है. विज्ञान ने बहुत कुछ बनाया है. परन्तु विज्ञान से बढ़कर, विज्ञान से कहीं आगे देवाधिदेव महादेव है. विज्ञान जन्म करा सकता है, बच्चे का पालन पोषण करा सकता है. मनुष्य को पशु, पशु को मनुष्य बना सकता है, परन्तु आज भी विज्ञान म्रत्यु को नहीं रोक सकता है. यहाँ तक अंत में चिकित्सा करते हुए डॉक्टर भी कह देता है, अब सब “उसके” हाथ में है. एक महिला शिव से प्रार्थना कर रही थी... हे शिव! लोगो की नजर लग जाए ऐसा रूप देना, लोगो की नजर टिक जाए ऐसा घर देना दूसरों की नजरों की नींद उड़ जाए ऐसा व्यापार देना, और मेरी नजर में हमेशा आप बसे रहे, ऐसा वर देना. एक सांसारिक व्यक्ति के लिए यह पाना चाहता है. महत्वपूर्ण है कि वह इन सबके साथ, इन सबसे ऊपर शिव को पाना चाहता है. शिव को भी लगाव रहा अपने परिवार से. यदि शिवजी को अपने परिवार से लगाव नहीं रहता तो वे माता सटी की देह को लेकर तांडव नहीं करते. तुमरुका जी ने कहा...शिवजी अपने भक्त को एक आशीर्वाद बहुत जल्द देते है, यदि तू मेरे शिवालय को आता है, पूजन करता है, मेरा नाम भजता है. तो तू भी मेरे परिवार का हिस्स्सा है. जैसे मेरा परिवार (माँ दुर्गा, गणेश जी, कार्तिकेय, आमोद प्रमोद आदि) पूजा जाता है, वैसे ही तेरी भी संसार में जय जय कार हो सकती है. भगवान जितनी जल्दी संतों पर कृपा नहीं करता है, उतनी जल्दी गृहस्थों पर कृपा करता है. जितनी कृपा संतों महतों पर कृपा नहीं करता, उससे ज्यादा कृपा ग्रहस्थ जीवन जीने वालों पर करता है. मीरा बाई, प्रह्लाद, प्रदुम्न, संत तुकाराम जैसे कई नाम हैं, जिन्होंने सांसारिक जीवन नहीं त्यागा था. उन्होंने संसार में रहते हुए, मोह माया को त्याग कर प्रभु नाम को जीवन में उतारा एवं प्रभु की कृपा प्राप्त करी. समझदार व्यक्ति और मुर्ख व्यक्ति में सबसे बड़ा फर्क होता है, मुर्ख व्यक्ति के कान में कोई कुछ भी कह दे वह भड़क जाता है. जबकि समझदार व्यक्ति को कोई कुछ कह भी दे तो वह शान्ति से सोचता है, समझता है, विचार करता है फिर जवाब देता है. आँध्रप्रदेश में कुकरेश्वर महादेव है. उज्जैन में 84 महादेव में से एक 21 वे महादेव का नाम कुकरेश्वर महादेव है. काशी में अस्सी घाट के पास भी कुकरेश्वर महादेव है. कुकर का अर्थ मुर्गा से माना जाता है. स्कन्द पुराण में कुकटेश्वर महादेव का नाम पक्षी योनी विमोचन महेश्वर के नाम से भी इस कथा का प्रसंग आता है. स्कंधपुराण के काशी खंड में 53 वे नंबर के अध्याय में यह प्रसंग प्राप्त होता है. यही कथा अवंतिका खंड स्कंधपुराण में भी प्राप्त होती है. एक कौशिक नाम के राजा हुए, बड़े दयालु, क्रपालु थे. शिव मंदिर में जाना, अपनी प्रजा का ध्यान रखते थे. उनकी पत्नी बहुत दुखी थी. जिस दिन से विवाह हुआ था, रात्री के समय कभी वह पति का दर्शन तक नहीं कर सकती थी. सूर्यास्त से लेकर पुनः सूर्योदय तक वह पति को नहीं देख पाती थी. उसे पता नहीं था, रात्री में पति कहा जाता है, कुछ पता नहीं था. वह व्याकुल हो जाती. चिंता करने लगती आखिर पति देव जाते कहाँ है. ऐसा करते करते लगभग विवाह के 35 वर्ष हो जाते है पर पत्नी को पता ही नहीं चलता कि पति आखिर रात्री को कहा जाते है. वह व्याकुल हो कर प्राणों को त्यागने का विचार कर चलती है. वह एक बावड़ी में देह त्यागने ही वाली थी कि गालव ऋषि का आगमन होता है. वह रोक देते है. क्यों प्राण त्याग रही हो, क्या हो हुआ. कौशिक राजा की पत्नी सब वृत्तांत बताती है. ऋषि गालव ने ध्यान लगाया एवं कौशिक राजा की पत्नी को बताने लगे हे बेटी तेरा पति पूर्व जन्म में राजा विदुरत का बेटा था. वह बहुत सुन्दर था. वह एक गलत कार्य करता था. रात्री में वह मुर्गे (कुकुट) को मार कर उसके मांस का भक्षण करता था. प्रतिदिन वह यह कार्य करता था. कुकुटो (मुर्गों) के राजा थे ताम्रचुर्ण. सभी कुकुट (मुर्गे) अपने राजा से गुहार करते है. कुकुटों के जो राजा थे ताम्रचुर्ण नाम के, वे शिव भक्त थे. शिव की सेवा करते थे. ताम्रचुर्ण राजा को गुस्सा आया. जो शिव की उपासना में डूबा रहता है, वह भले कुकुट था, पक्षी था पर वह शिव की उपासना में लगा रहता था. तम्रचुर्ण ने जाकर विदुरत राजा के पुत्र से कहा राजन तुम सम्पूर्ण भोग भोगने के लिए आए हो, तुम राजा के पुत्र हो परन्तु यदि तुम पक्षियों का संहार कर रहे हो, कुकुटों को मार रहे हो यह श्रेष्ठ नहीं हैं मैं श्राप देता हूँ तुम क्षय रोग से ग्रसित हो जाओगे. जैसे ही सुना. उसे अपनी गलती का अहसास हुआ. वह क्षमा याचना करने लगा. इस पर राजा ताम्रचुर्ण ने कहा मैं क्षय रोग से मुक्त कर देता हूँ. परन्तु अगले जन्म में जब तुम जन्म लोगे तो दिन में तुम मानव की योनी में रहोगे परन्तु सूर्यास्त होने से लेकर पुनः सूर्योदय तक तुमने कुकुटों का वध किया है, इसलिए तुम कुकुट (मुर्गे) की योनी में रहोगे. मांसाहार करने वालो से निवेदन हैं जितना कष्ट आप किसी पक्षी या पशु को दे रहे हैं. उतना ही कष्ट आप को मरने से पहले भोगना पड़ता है. अब रानी ने गालव ऋषि से प्रार्थना की अब मेरे पति की मुक्ति कैसे हो, क्या करें जिससे वे रात्री को कुकुट योनी को प्राप्त न हो. इस पर गालव ऋषि ने कहा – जिस स्थान पर ताम्रचुर्ण ने तप किया एवं अपनी चोच में मिटटी भरकर शिवलिंग का निर्माण किया एवं उसका पूजन किया. वहां जाकर उसका पूजन कर क्षमा याचना करें तो वह इस श्राप से मुक्त हो सकता है. राजा ने उस शिवलिंग की पूजा करी, उपासना करी एवं इस श्राप से मुक्त हुआ. जो काशी में रहते हो या उज्जैन में रहते हो वहां कभी दर्शन के लिए जाते हो तो उन्हें ऊपर वर्णित मंदिरों के दर्शन करना चाहिए, वहां जल अर्पित करना चाहिए ताकि हमारे कुल में हमारी पूर्व की पीढ़ियों में भी यदि कोई पक्षी योनी में पड़ा हो उसे मुक्ति प्राप्त हो. गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्र जी द्वारा पशुपति नाथ व्रत के बारे में पुनः बताया गया. इस व्रत की सम्पूर्ण जानकारी एवं नियम आप ऐप – Gurudev Pandit Pradeep Mishra App या वेबसाइट www.gkcmp.in के उपाय खंड में प्राप्त कर सकते है. आगामी श्रावण माह में यदि आप श्रावण सोमवार कर रहे है तो पशुपतिनाथ व्रत न करें. पशुपतिनाथ व्रत कर रहे है तो श्रावण सोमवार न करें. (एक बार में एक ही व्रत गिनती में गिना जाता है) लोग कहते है यह पंडित प्रदीप मिश्रा पता नहीं कहा कहा से कुछ भी कथा लेकर आता है. ऐसा नहीं हैं जिन भी पुराणों से शिव भक्ति रस प्राप्त होता है. उसका संकलन कर आप तक लाया जाता है. जिन कथाओं से कुछ सिखा जा सकता है, उन कथाओं को आप तक लाया जाता है. जिस भाव से भी, जिस प्रसंग से भी यदि आप में शिव भक्ति जाग्रत होती है वह प्रसंग वह कथा आप तक लाया जाता है. एक गुरु वह होता है, जो एक राजा के घर में भी प्रकाश करता है और एक गरीब के घर भी प्रकाश करता है. चाहे गरीब आएं या कोई धन पति, वैभव पति आए उसका सम्मान करना चाहिए. एक गुरु का सर्वश्रेष्ठ लक्षण ही यही होता है कि वह इस तरह भेद भाव नहीं करता है. जिस तरह दीपक राजा का घर हो या गरीब का घर हो, वह दोनों जगह प्रकाश करता है. इसी तरह एक गुरु द्वारा ज्ञान का दीपक लगाने के लिए कोई भेद भाव नहीं किया जाना चाहिए. कोई गरीब हो या कोई अमीर हो दोनों को सामान देखना चाहिए. फ़ुटबाल नाम का एक खेल होता है. इसमें एक फ़ुटबाल होती है, जिसे सभी खिलाडी उसे लात से मारते है. क्योंकि फ़ुटबाल अन्दर से खाली है, इसलिए सब जगह से वह लात खाती है. यदि उसमें अन्दर से बल होता तो कोई उसे लात नहीं मारता. शिव अपने भक्तों को वह बल प्रदान करते है, जिससे संसार में कोई उसे दुत्कार न सकें. वह संसार के धक्के खाने से बच जाए. ऐसी करुना ऐसी दया हमारा देवाधिदेव महादेव अपने भक्तों पर करता है. शिव के मंदिर में जाओ कभी पूजन में कोई कमी रह भी जाए, तो कभी निराश मत होना. कुछ लोग सोशल मीडिया आदि के माध्यम से अफवाहें उड़ाते है प्रदोष का व्रत ऐसा नहीं किया तो श्राप लगेगा, ऐसा पूजन नहीं किया तो तुम्हे श्राप लगेगा, यह सब गलत बाते है. भोला नाथ हमारे पिता है वह अपने बच्चों के छोटे से प्रयास को भी स्वीकार करते है. श्रावण में कई लोग भी आपको भ्रमित करने आएँगे. आपको भ्रमित नहीं होना है. श्रावण में दो लोटे जल अर्पित करना हैं. शिव हमारी जरुर सुनेगा. यदि कोई ओर पूजन कर रहा हो उसकी थाली में कमी हो तो उसे टोकना भी नहीं चाहिए. इस तरह आज की चतुर्थ दिवस की गुरु श्री शिवमहापुराण कथा समाप्त होती है. सभी को शिव कृपा प्राप्त हो इसी भाव के साथ श्री शिवाय नमस्तुभ्यम 🙏🙏🙏 हर हर महादेव 🙏🙏
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