
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
जैसे घर में अँधेरा होने पर टॉर्च को ढूंढा जाता हैं, मोमबती को ढूंढा जाता हैं. वैसे ही यदि शिव की कृपा प्राप्त हो, शिव पर जल अर्पित किया हैं तो जीवन में कभी दुःख का अँधेरा होने पर हमें किसी ओर के घर जाकर अपना दुखड़ा नहीं रोना पड़ता, भगवान शिव स्वयम हमें ढूढ़ते हुए आते हैं एवं हमारे दुःख दूर करते हैं. एक बार जल चढाने वाला, एक बार शिवालय जाने वाला, भगवान शिव को गुरु मानने वाला कभी अकेला नहीं रहता, शिव हमेशा उसके साथ रहते हैं. स्कंधपुराण के काशी खंड के 53 वां अध्याय में यह प्रसंग आता हैं काशी में एक राजा हुए हैं दिवोदास. दिवोदास राजा ने प्रभु की भक्ति इतनी की कि जब जब दिवोदास इंद्र को याद करते इंद्र आ जाते, ब्रह्मा जी को याद करते ब्रह्मा जी आ जाते हैं. दीवोदास जब जिस देव को आमंत्रण देता वो देवता उसके सामने आ जाते. अब दिवोदास को एक बार अहंकार हो जाता हैं, मैं जिस भगवान को बुलाता हूँ वे आ जाते हैं. इन सब को मैं निमंत्रण देता हूँ और वे सब आ जाते हैं. राजा दिवोदास का यह भ्रम होता हैं. वह यह नहीं जानते कि चूँकि वे काशी में रहते हैं इसलिए देवता आते हैं. सभी देवता काशी भूमि को नमन करने, प्रणाम करने के भाव से की चलो इस तरह शिव भूमि को प्रणाम कर लेंगे वे दिवोदास के निमंत्रण पर आ जाते हैं. एक दिन दिवोदास ब्रह्मा जी से वर मांगता हैं, मेरी अनुमति के बिना काशी में कोई देवता प्रवेश न करें. ब्रह्मा जी ने कहा, ठीक हैं परन्तु ध्यान रहें इस अवधि में यदि काशी में कोई उपद्रव हुआ कोई परेशानी आई तो उसी क्षण तुम्हारा समय ख़राब आ जाएगा, तुम्हें काशी भी छोड़कर भी जाना पड़ सकता हैं. दिवोदास पुनः कहने लगा मेरे होते हुए काशी को कुछ नहीं हो सकता हैं. सभी देवताओं ने शिवजी से निवेदन किया. शिवजी ने देवताओं से कहाँ जाओं कुछ उपद्रव करों सभी देवता जब काशी जाते वहां शिव भक्ति में रम जाते परन्तु कुछ उपद्रव नहीं कर पाते. शिव ने अंत में अपने एक गण कुकर को भेजा. कुकुर ने काशी भूमि पर जाते ही शिव नाम की अलख जगाने लगा एक शिवलिंग की स्थापना करी. यह शिवलिंग आज काशी में कुकरेश्वर महादेव के नाम से जाने जाते हैं. उनकी इस भक्ति आवेग के आगे दिवोदास को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह क्षमा प्रार्थी हुआ. शिवलिंग का पूजन कर वह शिवधाम को प्राप्त हुआ. जो ज्यादा दान करता रहता हैं उसे भी अहंकार आ जाता हैं. जो ज्यादा भक्ति पूजन करता रहता हैं उसे भी अहंकार आ जाता हैं कि मैं ही सबसे बड़ा भक्त हूँ. जो ज्यादा दूकान बैठता हैं उसे लगता हैं मैं ही दूकान चला रहा हूँ. जो मंदिर भी जाता रहता हैं, उसे भी अहंकार आ जाता हैं कि यह मंदिर मैं ही चला रहा हूँ. अभिमान कोई दूसरा नहीं देता हैं. यह अपने आप आ जाता हैं. और जब यह अभिमान आता हैं, वैसे ही हमारे इस कर्म का फल कम होता जाता हैं. सबसे बड़ा प्रयास यही करें कि जब सब अच्छा चल रहा हो तो अहंकार मत करना. हमारे देवताओं में कोई भेद नहीं हैं. राम ही कृष्ण हैं. कृष्ण शिव हैं. शिव ही ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा ही शिव हैं. देवताओं में कोई भेद नहीं होता हैं. प्रकाश बल्ब से भी होता हैं, ट्यूबलाइट से भी होता है.प्रकाश हेलोजन से भी होता हैं. बस आकार अलग अलग होता हैं, पर सबका काम एक ही होता हैं प्रकाश करना. इसी तरह चाहे तुम राम नाम लो, कृष्ण नाम लोग, शिव नाम लो जैसे सभी बल्ब का नाम प्रकाश देने का होता हैं, इसी तरह सभी का कार्य एक हमें मुक्ति दिलाना हैं. सभी भगवान एक हैं. हम किसी को बड़ा और किसी को छोटा बताने का प्रयास करते रहते हैं. कभी कोई कहता हैं राम बड़े हैं, कोई कृष्ण को बड़ा बताते हैं. हम सनातन में रहकर हमारे अपने ही भगवान में भेद करते हैं. ऐसा नहीं हैं सभी भगवान एक हैं. सभी आराध्य एक हैं. जीवन में में यदि धुप हैं तो छाँव भी आती है. यदि छाँव है तो धुप भी आएगी. यदि सुख हैं तो दुःख भी आयेंगे और यदि दुःख हैं तो सुख भी आयेंगे. बस शिव पर विश्वास करें कि यदि आज दुःख हैं, विपदा हैं तो वह काशी वाला संभालना वाला हैं, वह सब संभाल लेगा. और यदि सुख हैं तो कभी अहंकार का भाव न आने पाए कि यह सब कुछ जो प्राप्त हो रहा हैं यह सब मेरे कारण हैं बस एक भाव रखें - --- भोले आपकी कृपा से सब काम हो रहा हैं, करता हैं मेरा बाबा मेरा नाम हो रहा हैं. एक शिष्य आया एक गुरु के पास कहने लगा मुझे चेला बनाओं. गुरु ने कहा मुझे गुरु बनाने से पहले तुम तिन लोगो को गुरु बनाओं, उसके बाद आना फिर मुझे गुरु बनाना. शिष्य ने पूछा जी आप बताइये मैं किन्हें गुरु बनाऊं. गुरु ने कहाँ तुम इन तिन को अपना गुरु बनाओं - चोर, कुत्ता, एवं छोटा बच्चा. शिष्य को आश्चर्य होता हैं, मैं इन तीनो को गुरु बनाऊ. गुरु ने कहाँ पहले जाऊं और इन तीनों को गुरु बनाओं और क्या सीखते हो मुझे आकर बताना शिष्य गया इन तीनो को गुरु बनाया एवं फिर पुनः वापिस आया. वापिस आने पर गुरूजी ने पूछा बनाया था गुर, तुमने तीनों से क्या सिखा ? शिष्य ने कहा जी गुरूजी मैंने तीनों से शिक्षा ग्रहण करी हैं चोर से सिखा – कमाने का तरीका, लगन से काम करने का तरीका, एवं अपने लक्ष्य पर नजर बनाए रखने का तरीका कुत्ते से सिखा – कुत्ते से वफादारी सीखी हैं. बच्चे से सिखा – बच्चे से मासूमियत, भोलापन सिखा हैं. एवं सिखा हैं यदि कोई डांट भी दे तो उससे द्वेष नहीं रखना, पुनः जा कर उसी के पास खेलने लगता हैं. गुरु कहते है, तुमने अच्छी शिक्षा ग्रहण करी हैं, अब मैं तुम्हे शिष्य स्वीकार करूँगा. धन और धर्म व्यक्ति के चलने का, चाल चलन का तरीका बदल जाता हैं. जब धन बढेगा तो व्यक्ति से अपनी वाणी भी संभालती नहीं हैं, अहंकार बढ़ता हैं. तामसी प्रवत्ति बढती हैं. इसलिए धन की अपेक्षा हमें धर्मं को जीवन में बढ़ाना चाहिए. जब धर्म बढ़ता हैं तो जीवन में विनम्रता बढती हैं. यदि तुम्हें मंदिर जाने में, तीर्थ जाने में, गुरु की शरण में जाने में शर्म आती हैं तो कोई बात नहीं अपने मित्रों में से उस मित्र को छांटो जो शिव भक्ति में लगा रहता हो, आपके अन्दर स्वयं शिव भक्ति जाग्रत होने लगेगी. सभी बच्चों से बहुओं से निवेदन किया हैं, परिवार में कोई पूजन हो, पूजा हो तो सहयोग करने का प्रयास करें. आपके द्वारा किये गए सहयोग मात्र से भी आपको उस पूजन का कुछ फल अवश्य प्राप्त होता हैं. कुर्म पुराण के 126 अध्याय के बाद यह जानकारी प्राप्त होती है. वहीँ लिंग पुराण में 139 अध्याय के बाद यह जानकारी प्राप्त होती हैं. गीता प्रेस गोरखपुर की भविष्यपुराण में भी यह प्रसंग आता हैं कि जिसका व्रत होता हैं उसकी पूजन की थाली या पूजन सामग्री जो व्यक्ति तैयार करता हैं, उसे उस पूजन का आधा भाग प्राप्त हो जाता हैं. मंदिर में पूजन करते समय यदि कोई आपकी थाली में से कुछ पूजन कर दे तो नाराज नहीं होना चाहिए. शिव तो सब जानते हैं किसका हैं, कौन लाया हैं, कैसे लाया हैं. किसी को सही दिशा बताना मार्गदर्शन करना भी पुण्य का कार्य होता है. यदि जीवन में कोई भटका हुआ मिले, परेशान मिले तो उसे सही रास्ता बताना चाहिए. उसके जीवन में कोई परेशानी हो उसे शिव भक्ति से जुड़ने के लिए प्रेरणा देना चाहिए. यदि उसके पूजन से उसकी कोई कामना पूर्ण होती हैं तो निश्चित रूप से आपको भी उस पूजन का फल एवं उस व्यक्ति का आशीर्वाद जरुर प्राप्त होता हैं. इस तरह आज शिवगुरु शिवमहापुराण कथा का पांचवा एवं अंतिम दिवस यहाँ समाप्त होता हैं. Gurudev Pandit Pradeep Mishra एवं www.gkcmp.in के द्वारा प्रयास किया गया आप तक कथा का सार एवं महत्वपूर्ण बिंदु उपाय आदि आप तक पहुचाएं जा सकें. भक्ति की यह धारा अविरल बहती रहें. यही कामना हैं. कथा समाप्ति पर यदि आपको लगता हैं हमारा कथा सार के रूप में आपको जानकारी उपलब्ध कराना सही दिशा में किया जा रहा कार्य हैं तो कृपया अपना सहयोग अवश्य देवें. इस मोबाइल एप एवं वेबसाइट को चलाने में संसाधनों की आवश्कता होती हैं. इन संसाधनों की पूर्ति आपके सहयोग के बिना नहीं हो सकती हैं. यदि कथा समाप्ति के आज पावन दिन आप कुछ सहयोग देना चाहते हैं तो आप अपनी सहयोग राशि 8770151481 पर भेज सकतें हैं. आपकी सहयोग राशि से ऐप में एवं वेबसाइट में नए नए सुधार किये जाते रहेगें एवं नई नई जानकारिया आप तक पहुचाई जा सकें. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम हर हर महादेव 🙏🙏🙏
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