
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
शिव को जो भी भाव से पुरे विश्वास एवं प्रेम से अर्पित किया जाता हैं, शिव स्वीकार करता हैं. शबरी के झूटे बैर को भी वह स्वीकार करते हैं. शिव को केवल आपका प्रेम चाहिए, आपका भाव चाहिए. एक वृक्ष होता हैं. उस वृक्ष पर यदि पुष्प यदि यह वृक्ष मेरी वजह से हैं. फल सोचे यह वृक्ष मेरी वजह से खड़ा हैं.पत्तिया सोचे यह वृक्ष मेरे कारण ही खड़ा हैं. यदि इन सभी की ऐसी सोच हो तो यह उनका भ्रम होगा. क्योंकि वृक्ष यदि जड़ों से जुड़ा हैं तो ही फल हैं, तो ही फुल एवं पत्तियों में ताजगी हैं. जड़ों से जैसे ही वृक्ष हट जाता हैं वैसे ही इन सभी का अस्तित्व भी ख़त्म हो जाता हैं. उसी तरह माता पिता और परमात्मा यह तिन हमारे जीवन की जड़ हैं. हम सोचे इनकी हमें जरुरत नहीं, हम इनके बिना ही खड़े हैं तो यह भ्रम मात्र हैं. इनके बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं. यह हमारे जीवन की वहीँ जड़ हैं जिनके आधार पर हमारा जीवन खड़ा होता हैं. नंदी के पिता शिलाद मुनि शिवजी की आराधना कर रहे थे. उन्हें संतान प्राप्त नहीं थी. संतान का सुख नहीं था. उन्होंने शिवजी का तप किया, आराधना की. परन्तु शिवजी शिलाद मुनि की परीक्षा लेने के लिए कभी बालक का रूप लेकर तो कभी किसी वृद्ध का रूप लेकर आए. अंत में जब शिव अपने वास्तविक स्वरूप में आए और शिलाद मुनि से पूछा हे शिलाद मुनि मांगो तुम क्या चाहते हैं. मुनि ने निवेदन किया हे प्रभु मैं कब से आपकी तपस्या, पूजन आराधना कर रहा हूँ आपने इतना विलम्ब क्यों लगाया प्रभु? मेरी सेवा में कहा कमी थी? भगवान ने कहा हे मुनि कमी तुम्हारी साधना में नहीं, परन्तु तुम्हारे कुछ पुराने कर्म थे जिनके कटने के उपरान्त ही मेरा आना निर्धारित था. शिलाद मुनि ने पुत्र की कामना कहीं, शिलाद मुनि को वर देकर कहा, मुनि आपको पुत्र रत्न प्राप्त होगा वह भी मेरी असीम भक्ति को प्राप्त होगा एवं उसका नाम नन्दीश्वर होगा. आवश्यक नहीं शिव अपने वास्तविक स्वरूप में आये एवं आपकी तकलीफे दूर करें, आपकी समस्या दूर करें. वह किसी भी रूप में आपके समक्ष आकर, किसी के भी रूप में आपके सम्मुख आकर आपको रास्ता बता जाता हैं. शिव अपने पास अपनी कृपा भी तब तक रखता हैं, जब तक हम उसके आश्रय में हैं, हमारा चित्त हमारे शिव में हैं. जब उसकी कृपा से हमें उन्नति, वैभव प्राप्त होता हैं तो हमारा मन शिव से हटकर वैभव में लग जाता हैं जीवन में अपने बच्चों को ऊँची से ऊँची शिक्षा प्रदान करें. वे जितना पढना चाहिए उन्हें पढने देना चाहिए. परन्तु प्रयास करें पढ़ाई के साथ संस्कार भी देना सुनिश्चित करें. आजकल कई घरों में देखते हैं, बच्चे ज्यादा पढ़ लिख जाते हैं तो माता पिता का सम्मान तक नहीं करते हैं. उन्हें डाटने लगते हैं. पापा मुझे बार बार मत कहा करो, मुझे कुछ मत कहा करो, अपमानजनक तरह से अपने माता पिता को झिड़क देते हैं. इसलिए यह आवश्यक हैं हम बच्चों को ऊँची से ऊँची शिक्षा देवे पर साथ में अच्छे संस्कार देना भी सुनिश्चित करें. ताकि वे अपने माता पिता का सम्मान करें. घर की मर्यादाओं का ध्यान रखें यदि परमात्मा आपको इतना सक्षम कर दे तो एक प्रयास करें कम से कम बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी अवश्य लेवें. यदि एक बच्चा शिक्षित हो कर ऊँचे मुकाम को प्राप्त करता हैं तो उसकी आने वाली पीढ़िय स्वतः शिक्षित होने लगती हैं. एवं आपका स्वयं की संतान आपके प्रति इतनी कृतज्ञ नहीं होगी जितना वह बालक आपके प्रति कृतज्ञ होगा. कई भक्तों को शिकायत रहती हैं, हम तो कब से शिव की उपासना कर रहे हैं, हमें कब कृपा प्राप्त होगी. गुरुदेव कहते हैं, शिव की कृपा आसानी से प्राप्त नहीं होती हैं. थोडा धेर्य लगता हैं, थोड़ी मेहनत लगती हैं. और इस तरह से जब आपको कुछ प्राप्त होगा तो निश्चित रूप से उसका एक सम्मान एवं स्थिरिता रहती है. इसलिए कभी निराश न हो शिव की कृपा प्राप्त होने में समय भले लगे परन्तु कृपा प्राप्त जरुर होती हैं. आपकी संपत्ति में कितने भी पार्टनर हो सकते हैं, आपकी संपत्ति में आपके बच्चे, आपकी पत्नी हकदार हो सकते हैं. परन्तु उस सम्पति को अर्जित करने में कोई पाप आप से हुआ हैं, उसे प्राप्त करने में कोई गलत कर्म आपसे हुआ हैं तो उस गलत कर्म का फल आपको भोगना पड़ता हैं. पांच चीजे पूर्व जन्म के प्रारब्ध से प्राप्त होता हैं. धन, सत्ता(पद), उच्च सिन्हासन, संपत्ति, सत्संग(शिव भक्ति) उपरोक्त पांच चीजे प्रारब्ध, पूर्व जन्म के कर्मों से प्राप्त होती हैं. यदि किस्मत में यह नहीं हैं तो आपको प्राप्त नहीं होगी. एक पिता के पास कितनी भी जमीन हो यदि संतान के प्रारब्ध या किस्मत में संपत्ति नहीं हैं तो वह जैसे जैसे बड़ा होगा वह समाप्ति बिकती चली जाएगी या वह उस संपत्ति को कभी भोग नहीं पाएगा. यही शिव भक्ति एवं सत्संग के साथ होता हैं. यदि पूर्व जन्म में कुछ अच्छे कर्म किये हैं, तभी आपको इस जन्म में शिव भक्ति प्राप्त होगी. पूर्व में कोई सत्कर्म किया होता हैं तो इस जन्म में आपको शिव कृपा, सत्संग प्राप्त होता है. अजामिल नाम का एक ब्राहमण था. वह प्रतिदिन मंदिर जाता उपासना करता हैं. एक बार की बात हैं. मंदिर जाता तो रास्ते में एक सुन्दर भवन आता था. उस भवन में एक वैश्या रहती थी. वह जब मंदिर जाता तो जाते समय सोचता जब भवन इतना सुन्दर तो इस भवन में जो वैश्या रहती होगी वह कितनी सुन्दर होगी. उसका मन भक्ति से भटक कर उस वैश्या में लग गया. उसके साथ रहने लगा विवाह कर लिया. दोनों साथ रहने लगा. उसकी पत्नी गर्भवती हुई. भगवान ने सोचा इसने पूर्व में मेरी सेवा करी हैं, इसका उद्धार आवश्यक हैं. एक दिन भगवान ने ब्राम्हण का रूप धर कर उसके घर पहुचे, कहाँ हमें भोजन काराओं. उसने कहा भोजन तो करा दूंगा पर पत्नी एक वैश्या हैं. भगवान् ने कहा कोई बात नहीं, परन्तु में कोई दक्षिणा भी नहीं दे पाऊंगा. इस पर ब्राहमण ने कहा कोई बात नहीं दक्षिणा में सिर्फ इतना दे देना कि चूँकि तुम्हारी पत्नी गर्भवती हैं, तुम वचन दो, जो बालक जन्म लेगा तुम उसका नाम नारायण रखोगे. अजामिल हां कह देता हैं. अब अजामिल वृद्ध हो चला था. म्रत्यु निकट थे, अंत समय में वह अपने पुत्र को आवाज लगाता अरे नारायण, नारायण. उसका पुत्र तो नहीं आता. परन्तु साक्षात नारायण आकर उसका उद्धार करते हैं. प्रभु के रास्ते से कभी भटक भी जाओगे तो प्रभु को चिंता रहती हैं अपने बच्चों की वह कैसे न कैसे आप को सत्मार्ग पर लाकर आपका उद्धार जरुर करेंगे. इसी के साथ आज की यह पुण्य कथा यही समाप्त होती हैं. गुरुदेव द्वारा आज की कथा में दो सुन्दर उपाय बताए गए जिन्हें आप उपाय खंड में देख सकते हैं. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम हर हर महादेव 🙏🙏
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