
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
यदि आप सोचे शिव के लिए बड़े से बड़े अनुष्ठान करेंगे तो शिव प्रसन्न होंगे ऐसा नहीं हैं. भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कोई आडम्बर मत करना, बस जो भी आपके पास हो पुरे भाव के साथ शिव को अर्पित करना, शिव स्वीकार करते हैं. जिस तरह एक बच्चा अपनी तुतलाती जबान से कुछ कहता हैं, तो माता पिता को बहुत अच्छा लगता हैं. यदि एक बच्चा तुतलाती भाषा में टूटे फूटे कुछ शब्द भी कहता हैं तो माता पिता समझ जाते हैं कि उनके बच्चे को क्या चाहिए. वह शिव हमारा पिता हैं, यदि हम पुरे भाव से जो भी हमें आता हो, जितना भी आता हो, जैसे भी आता हो हम शिव की आराधना करेंगे तो हमारा पिता वह शिव प्रसन्न होगा, वह समझ जाएगा कि उनके बच्चों को क्या चाहिए. रुद्राक्ष एवं तुलसी की माला क्यों पहनना चाहिए? एक कटोरी में शकर लेलो, उसमें थोडा सा तुलसी दल डाल देवें वह प्रसाद बन जाता हैं. भोजन की थाली में एक थोडा सा तुलसी दल डालने से वह प्रसाद बन जाता हैं. इसी तरह शिव के प्रसाद के लिय उसमें एक बेलपत्र रख देवें. वैसे ही जैसे एक तुलसी दल डाल देने से वह किसी भी भोजन सामग्री को प्रसाद बना देता हैं. उसी तरह गले में एक रुद्राक्ष, हमें शिव के नजदीक ले आता हैं, हमें शिव का कृपा पात्र बना देता हैं. जैसे प्रसाद को नाली या किसी गन्दी जगह नहीं डाला जाता वैसे ही जिस व्यक्ति के गले रुद्राक्ष हो, ऐसा व्यक्ति यदि एकाएक काल के गाल में भी समा जाए तो ऐसे व्यक्ति को यमराज भी किसी गलत जगह नहीं रखता उसे उच्च आसन प्रदान करता हैं एक शिवा भक्त की कथा का प्रसंग हैं. शिवा भक्त को सभी शिव कहते हैं. शिवा के पिता विकलांग होते हैं, उसकी माता मालती मेहनत मजदूरी कर के घर चलाती हैं. एक दिन माँ काम कर रही थी, अपने सेठ जी से निवेदन किया, मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं. अब मेरा बेटा आपके घर काम करने आएगा. वह 9 साल के पुत्र शिव सेठ के यहाँ काम करने लगा. सेठ का घर दूर था, रात को घर में आने में डर लगता. पुत्र ने माँ मालती से कहाँ माँ मुझे रात में आने से डर लगता हैं. माँ शिव मंदिर में लेकर गई एवं उसके गले में रुद्राक्ष माला पहनाई एवं बालक को समझाया तुम अकेले नहीं हो शिव स्वयं तुम्हारे साथ रहते हैं, अब तुम्हें डरने की जगह नहीं. शिवा रोज जिस रास्ते से रात्रि को घर आता एक दिन उसे पेड़ पर लटका हुआ कोई प्रेत दिखाई दिया. शिवा इस बार डरा नहीं उसनें विनम्रता से प्रणाम किया. हे प्रेतराज आप मुझे कैसे दिखाई दे रहे हैं. वह प्रेतराज कहता हैं आपके गले में रुद्राक्ष हैं, जब आप प्रतिदिन यहाँ से गुजरते एवं आपके चरण की रज जब हवा में उड़कर मुझे लगती रही उससे मुझे यह बल मिला कि मैं आपको दिखाई भी दे रहा हूँ एवं बोल भी पा रहा हूँ. वह बालक शिवा को धन्यवाद देता हैं एवं निवेदन करता हैं आप प्रतिदिन इसी रास्ते से गुजरे ताकि रुद्राक्ष के प्रभाव से मुझे भी मुक्ति मिल सकें. कुछ दिनों बाद जहा प्रेत मिला था इस बार शिवा को मानिक मोतियों की मालाओं से सुसज्जित एक गन्धर्व को देखा, प्रणाम किया. उनसे पूछा आप कौन. उन्होंने बताया हे बालक शिवा में प्रेत था, जो आपके चरण की रज के प्रतिदिन स्पर्श से आज प्रेत योनी से मुक्त हुआ हूँ. आपका कोटिशः धन्यवाद. बालक शिवा कहता हैं. यह मेरा नहीं, इस रुदाक्ष का महत्व हैं. जिसके प्रभाव से आप प्रेत योनी से मुक्त हुए हैं. रुद्राक्ष को लाल धागे में डाल कर हर व्यक्ति ने अपने गले में धारण करना चाहिए. स्त्री पुरुष, बच्चे, बुजुर्ग हर उम्र के व्यक्ति ने रुद्राक्ष को अपने गले में धारण करना चाहिए. जब शिवा के गलें में रुद्राक्ष था एवं उसके चरण की धुल के स्पर्श से एक प्रेत अपनी योनी से मुक्त हो सकता हैं तो हमारे गले में धारित रुद्राक्ष हमें कितनी परेशानियों, समस्याओं, हवा, पवन दोषों से रक्षा कर सकता हैं. सम्पूर्ण ब्रहमांड में त्राहि त्राहि हो रही थी. अकाल पड रहा था. सभी देव शिवजी के पास पहुचें. शिव अखंड समाधि में थे. सभी देवों ने प्रार्थना करी परन्तु शिव समाधि से बाहर नहीं आएं. माता पार्वती से अपने बच्चों की तकलीफ देखि नहीं गई. माता पार्वती ने तब माता अन्नपूर्णा का रूप लिया एवं संसार में व्याप्त अकाल का नाश किया. संसार में नारी जब जब आगे बढ़ने की कोशिश करती हैं, उन्हें पीछे धकेलने की कोशिश की जाती हैं. उन्हें ताना मारा जाता हैं, उन पर लान्चन लगाए जाते हैं. गुरुदेव कहते हैं, हे नारी शक्ति कोई कुछ भी कहे आप अपने पथ पर आग्रसर हो कर आगे बढती रहे, कोई कुत्ता हाथ पर भौंक ही सकता हैं, उसमें हाथी को रोकने का बल नहीं होता हैं. आप अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होकर बढ़ते रहे. कोई साधक, तपस्वी, सन्यासी के द्वारा ताप किया जा सकता हैं. परन्तु हम जो कि सांसारिक जीवन जी रहे हैं, हमारे लिए साधना तपस्या बहुत मुश्किल हैं. हमारे लिए शिव नाम जपना ही हमें तार सकता हैं. शिव के मंत्र जाप में ही इतनी शक्ति हैं कि हम मात्र मंत्र जाप से ही शिव को प्राप्त कर सकते हैं. ॐकारेश्वर (मध्यप्रदेश) की परिक्रमा की जाती हैं. उस व्यक्त ऊपर पहाड़ी की ओर जब बढ़ते हैं. एक गौरी केदार मंदिर के दर्शन होते हैं. यह एक अति प्राचीन मंदिर हैं. जो की ऊपर परिक्रमा मार्ग में स्थापित हैं. यहाँ शिवलिंग काले पाषाण का हैं एवं काफी उंचाई का हैं. शिवलिंग में एक सुन्दर हिरा दर्पण लगा हुआ था. उस दर्पंण का कार्य था. जो भी कोई उसके सामने आता था उसे उसका पिछला जन्म एवं अगला आने वाला जन्म दिखा देता था. मुगलों के शासन में वहां के राजा नवाब को पता चला. वह वहा गया शिवलिंग पर लगे हुए हीरे में उसनें अपना प्रतिबिब देखा. जिसमें देखा कि पिछला जन्म बहुत बुरा था. एवं आगे आना वाला जन्म और भी बुरा होगा. वह क्रोधित हो उठा एवं पुरे मंदिर को तोड़ कर नष्ट कर दिया एवं हीरे को नष्ट कर दिया. वह मुग़ल बादशाह भले ही वह दर्पण नष्ट कर दिया हो, परन्तु अपने लिखे को नहीं बदल सकता. यदि वह अपने कर्म सुधार लेता तो उसका अगला जन्म भी बदल जाता. कहते हैं माता पार्वती जी ने केवल बाल्यवस्था में ही शिवजी का पार्थिव पूजन नहीं करती थी. बल्कि वे विवाह के पश्चात यहाँ तक की गणेश जी के विवाह एवं शुभ लाभ हो जाने के बाद भी पार्थिव पूजन करती रही. जब माता पार्वती को सबकुछ प्राप्त हो चूका था फिर वे पार्थिव पूजन क्यों करती रहीं. गुरुदेव कहते हैं, सती खंड के अंतर्गत एक बात आती हैं. शिव की भक्ति केवल कुछ पाने के लिए ही नहीं की जाती बल्कि शिव की उपासना शिव के चरणों में हमेशा रहने के लिए, हमेशा शिव के कृपा पात्र बने रहने के लिए की जाती हैं. अतः चाहे आप वैभव धन सम्पदा से परिपूर्ण हो, परिवार सम्पूर्ण हो फिर भी शिव आराधना, शिव पूजन, पार्थिव पूजन करते रहना चाहिए. जिस व्यक्ति के पास जो होता हैं, वह वहीं दे सकता हैं. यदि किसी के पास कीचड़ है तो वह वहीँ दे सकता हैं, किसी के पास इत्र हैं तो वह इत्र देगा. इसलिए कोई आक्षेप लगाए, निंदा करे तो करने दे, हम अपनी सेवा अपनी भक्ति में लगे रहे. जिस तरह कचरे की गाडी के पास खड़े रहने मात्र से भी उसकी बदबू हमें आएगी. इसी तरह निंदा करने वाले व्यक्ति से हमें दूर रहना चाहिए. कोई शिव निंदा करें, शिव भक्ति की निंदा करें, ऐसी बाते हमें श्रवण भी नहीं करनी चाहिए. उस स्थान से हमें चले जाना चाहिए. हीरे को परखने वाला मिल भी सकता हैं, परन्तु मन की पीड़ा को समझने वाला नहीं मिलता. मन की पीड़ा को केवल देवाधिदेव महादेव समझ सकते हैं, ना केवल समझते हैं, बल्कि उस पीड़ा को दूर भी करते हैं. गुरुदेव द्वारा आगामी 21 जुलाई से प्रारम्भ होने वाली ऑनलाइन शिव महापुराण कथा की जानकारी दी गई. आप कथा की सम्पूर्ण जानकारी ऐप एवं वेबसाइट के कथा कार्य्रकम खंड में देख सकते हैं. वेबसाइट हैं www.gkcmp.in इस तरह आज पंचम दिवस की कथा समाप्त होती हैं. हम सभी पर गुरुदेव एवं बाबा कुबेरभंडारी का आशीर्वाद बना रहे. इसी भाव के साथ हर हर महादेव श्री शिवाय नमस्तुभ्यम🙏🙏🙏
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