
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
संत, सती एवं भक्त, यह तिन जिस जगह भी हो. आपके आसपास भी कही ऐसा कोई संत स्वभाव वाला व्यक्ति हो, पतिव्रता नारी हो एवं भगवान की भक्ति में डूबा कोई व्यक्ति हो ऐसे परिवार, कुल समाज की रक्षा स्वयं परमात्मा करता हैं. आवश्यक नहीं कोई बड़ी बड़ी माला पहने तो संत हैं. बड़ी ढाढ़ी हो तो वह संत ही हो. संत वह हैं जो मन से भक्ति में लगा हो. वह जहां भी रहे वहां शिव नाम में डूबा हो. भगवान भक्ति में, शिव आराधना में जिसके आत्मा संतुष्ट होकर नृत्य करने लगे समझना वह महात्मा पुरुष हैं, वह एक संत हैं. घर के बाहर शुभ लाभ लिख देना पर्याप्त नहीं हैं. यदि घर के बाहर शुभ लाभ लिख दिया लेकिन हम हमारे मन में दुर्गुण एवं अशुद्ध विचार लिए बैठे हैं तो उस शुभ लाभ लिखा भी कोई काम नहीं आएगा. अपने मन में शुद्ध विचार, शुद्ध आचरण होने चाहिए यही आपके लिए शुभ होता हैं, और घर को लाभ प्राप्त होता हैं. एक माँ बच्चे को स्कूल भेजती हैं तो वह यह सोचकर भेजती हैं, वह जैसा जा रहा हैं, वैसा ही आये, सुरक्षित रहे. आनंदित हो कर लौटे. इसी तरह भगवान भी सोचते हैं, जिस तरह निर्मल मन के साथ, शुद्ध विचारों के साथ एक बालक जन्म लेता है, वैसा ही संसार से जब वापिस आए तब शुद्ध मन, बिना किसी कपटी व्यवहार के आना आना चाहिए. एक महिला का प्रश्न आता हैं, घर में सास ससुर बीमार रहते हैं, बच्चे छोटे छोटे हैं. उनको संभालना पड़ता हैं. मैं मंदिर जाकर शिव पर जल नहीं अर्पित कर पाती क्या करना चाहिए. गुरुदेव कहते हैं, यदि आप घर पर रहकर अपने सास ससुर की सेवा करते है तो भी शिव आपसे प्रसन्न होगा. मंदिर नहीं जा सकते तो भी कोई बात नहीं. घर में जो भगवान विराजित हैं, उनकी आराधना करें. घर में जो शिवलिंग हैं उस पर जल अर्पित कर सकते हैं. कई घरों में माताएं बच्चो को पढ़ाने के दौरान मोबाइल चलाने लगती हैं. जब बच्चे को पढाए उस समय कोई अन्य कार्य भी नहीं करना चाहिए. पूरा ध्यान अपने बच्चे पर लगाना चाहिए. स्कुल में पढ़ाई के दौरान प्रश्नपत्र के अलग अलग तरह के प्रश्न आते थे. कुछ विकल्प के प्रश्न होते हैं जिसमें चार में से एक सही विकल्प चुनना हैं. परन्तु नंबर कम होता हैं लगभग एक नंबर. जबकि कुछ दीर्घउत्तरीय होते हैं, जिसमें ज्यादा लंबा उत्तर लिखना होता हैं, लेकिन नंबर भी ज्यादा प्राप्त होते हैं. जो अच्छा विद्यार्थी होता हैं, उसकी नजर ज्यादा नंबर पर होती हैं, कम नंबर वाले सही विकल्प चुनने वाले तो आसानी से जल्दी से हल किये जा सकते हैं. इसी तरह जीवन में छोटे छोटे कम नंबर वाले प्रश्न जीवन में कई आते हैं. घर के वाद विवाद, छोटी तकलीफे, सास बहु के विवाद आदि सब कम नंबर के प्रश्न हैं, ये सब हल होते रहेंगे. महत्वपूर्ण हैं शिव भक्ति की प्राप्ति यदि हमने वह प्राप्त कर ली तो बाकी चीजो का समाधान स्वतः होने लगेगा. माँ जगत जननी तन पर उबटन लगा कर स्नान के लिए जाती हैं. माँ एक कन्दरा एक गुफा के अन्दर स्नान के लिए जाती हैं. माता ने शरीर से उबटन निकाल कर एक पुतला बना दिया. माता पार्वती की सखी ने कहाँ क्या इस पुतले में प्राण आ सकते हैं. माता जगत जननी ने कहाँ हां क्यों नहीं इस पुतले में भी प्राण आ सकते हैं. पार्वती जी के विश्वास के परिणामस्वरूप उस पुतले में प्राण आए. एवं वह पुतला स्वमेव एक जाग्रत अवस्था में आ गया. उसे उस कन्दरा के बाहर खड़े रहने का आदेश दिया एवं माता ने कहा किसी को अन्दर प्रवेश मत देना. कुछ समय में महादेव आए. उन्हें अन्दर जाने नहीं दिया. शिव क्रोधित हुए एवं त्रिशूल से उस बालक विनायक का शीश काट दिया. शीश माता पार्वती की गोद में जा गिरा. माता बहुत दुखी हुई, क्रोधित होकर महादेव से कहाँ मेरे पुत्र को पुनः जीवित करें अन्यथा में क्रोध से सम्पूर्ण ब्रम्हांड नष्ट हो जाएगा. महादेव ने अपने गणों को आदेश देकर कहा जो भी माँ अपने पुत्र की ओर पीठ कर सो रही हो उसका शीश लेकर आओ. गण जाते हैं एवं एक हाथी का का शीश लेकर आते हैं. महादेव उस हाथी का शीश विनायक के धड़ पर लगाते हैं एवं उसे जीवन दान देते हैं. एवं वर दिया प्रथम पूज्य होंगे. किसी भी पूजन की शुरुआत श्री गणेश जी के पूजन से की जाती हैं. बच्चा बाल्यअवस्था में होता हैं, बच्चा यदि माँ के पास सो रहा हैं तो माँ अपने बच्चे से पीठ कर नहीं सोती हैं. यह कलियुग की विडम्बना हैं कि एक माँ अपने बच्चे की ओर पीठ कर सोती भी नहीं हैं. और वहीं पुत्र अपनी उस माँ से बढे होकर मुह मोड़ लेता हैं. शिव भक्ति करने वाले हर व्यक्ति में एक विश्वास, अटूट एवं अटल विश्वास अपने महादेव पर होना चाहिए. कोई सा भी कार्य हो यदि शिव की शरण में बैठकर मेहनत कर रहे हैं, तो वह सफल होता ही हैं. कोई भी कार्य मन में शंका रखकर न करें. यदि शिव पर आस्था हैं, शिव पर भरोसा हैं, एवं कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं तो कोई कार्य असंभव नहीं होता हैं. जब भक्ति का पुण्य बढ़ता हैं, तब परमात्मा छप्पड़ फाड़ कर देना प्रारम्भ करता हैं. जब व्यक्ति का पाप बढ़ता हैं, तब परमात्मा थप्पड़ मार कर लेना प्रारम्भ करता हैं मौसम एवं मनुष्य का कोई भरोसा नहीं रहता, ये कभी भी बदल सकते हैं. एक बाज पक्षी होता हैं, जिसकी उम्र लगभग 70 से 100 वर्ष मानी जाती हैं. इस अवधि में जब वह लगभग 40 वर्ष की उम्र पश्चात उसके पंखे कमजोर होते हैं, चोच कम जोर हो जाता हैं. ऐसे में उसके पास दो विकल्प होते हैं, या तो वह मृत्यु कोक स्वीकार कर लेवे या संघर्ष करें. कुछ पक्षी संघर्ष का रास्ता चुनते हैं. वह कहीं एकांत में जाकर अपनी पुरानी हो चूँकि चोच, नाख़ून को पर्वत पर घिस घिस कर समाप्त कर देता हैं, अपने पंख नोच नोच कर निकाल देता हैं. कुछ समय ऐसे ही मरणासन्न अवस्था में रहता हैं. कुछ दिनों बाद धीरे धीरे उसे नए पंख, नए नाख़ून नए चोच आने लगती हैं. एवं पुनः वह अपने जीवन में लौट आता हैं. जीवन में उम्र का कोई सा मोड़ भी आपको कमजोर नहीं करता, कमजोर आपको आपकी मनःस्थिति बनाती हैं. यदि आप स्वयं को कमजोर मानते हैं तो जवानी में कमजोर रह्गें. यदि मन से आप स्वयं को मजबूत मानते हैं. मन में जीने की इच्छा रखते हैं, तो फिर वृद्धा अवस्था में भी आप स्वयं में उत्साह एवं ऊर्जा का संचार होते देखेंगे. इस तरह आज षष्टम दिवस की श्री शिवमहापुराण कथा यहाँ विराम ले रही हैं. गुरुदेव द्वारा आज नवम्बर में श्री लंका में होने वाली आगामी शिवमहापुराण कथा के आयोजन की जानकारी दी गई हैं. इस कथा के बारे में विस्तृत जानकारी आप कथा-कार्य्रकम खंड में देख सकते हैं. हर हर महादेव 🙏🙏 श्री शिवाय नमस्तुभ्यम 🙏🙏
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