
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
पौराणिक कथाओं के अनुसार स्त्री को रजस्वला(पीरियड्स) के दौरान पूजन, पूजा-पाठ, रसोई घर में प्रवेश, घर के कार्य, वरुण देव क्षेत्र(जहां पिने के पानी का स्थान हो) आदि में प्रवेश/स्पर्श नहीं करना चाहीये. परिस्थितिवश या मज़बूरी में कई बार/कभी कभी ऐसे क्षेत्रों में रजस्वला नारी द्वारा प्रवेश/स्पर्श हो जाता है. इस तरह के कर्म को ब्रह्महत्या के बराबर दोष माना गया है. ऋषि पंचमी का व्रत इस तरह के पाप एवं दोष का निराकरण करता है. साथ ही पूर्व जन्म का यदि कोई दोष हो तो उसका भी निराकरण करता है. व्रत के अतिरिक्त भारत में किसी किसी क्षेत्र में स्त्रियाँ पञ्चताड़ी त्रण(अतिझाड़ा) से दातुन कर जितनी तीलियाँ ली जाती है, उतने लौटे पानी से स्वयं स्नान किया जाता है. कही कही भाई के दिए हुए चावल कौवे को खिला कर फिर भोजन किया जाता है. नोट: अलग अलग क्षेत्रों में परम्पराओं के अनुसार रीती रिवाज प्रचलित रहते है. जहां तक हो सके अपने क्षेत्र के अनुसार उन परम्पराओं पालन अवश्य करें. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम🙏🙏🙏
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