
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
शिव-भक्ति का मुख्य आधार विश्वास हैं. यदि आप शिव पर विश्वास करते हैं तो ही शिव आपको प्राप्त होता हैं. आपके द्वारा किये गए विश्वास के कारण ही शिव आपका हाथ कभी नहीं छोड़ता, जीवन के अंतिम समय तक वह आपका साथ निभाता हैं. एक पुष्प जो बगीचे में हैं, उसे स्वयं को नहीं पाता उसका क्या हाल होगा, क्या वह किसी मंदिर में जाएगा, या वह किसी वेणी आदि का हिस्सा बनेगा. या हो सकता हैं किसी की अंतिम यात्रा में शव पर रहेगा. इसी तरह एक जन्म ले रहे बच्चे को नहीं पता होता वह कहा जन्म ले रहा हैं, किसके घर जन्म ले रहा हैं. उसके माता पिता कौन हैं. यह हमारे पूर्व जन्म के कुछ अच्छे कर्म है जो हमें मानव का जन्म मिला उसमें भी सनातन धर्म और यह भारत की पुण्य धरा मिली हैं हर सनातन घर में एक शिवलिंग होना चाहिए. यह अप्रासंगिक हैं कि कोई कहे घर में शिवलिंग नहीं होना चाहिए. आजकल कुछ लोग इस तरह की खबर फैलाते हैं कि घर में कोई शिवलिंग नहीं रखना चाहिए. यह पूरी तरह गलत है. हर सनातन घर में शिवलिंग होना चाहिए. यदि मैकेनिक अच्छा हो, और वह गाडी को रिपेयर कर रहा हैं, तो गाडी बार बार खराब नहीं होती हैं, इसी तरह यदि आपका गुरु अच्छा हैं, तो यह मन बिगड़ता नहीं हैं. वह सत्मार्ग पर चलती रहती हैं. एक मेकेनिक का कार्य होता हैं ब्रेक देखना, आयल देखना एवं जहा जो कोई त्रुटी होती हैं उसे चुप चाप शान्ति से सुधारता हैं न कि जो खराबी होती हैं उसके बारे में शोर मचाता हैं. सच्चे गुरु की यह प्रवत्ति होती हैं वह आपके दुर्गुणों के बारे में सबको नहीं बताता वह शान्ति से आपके दुर्गुणों को दूर करने में लगा रहता हैं. एवं आपको सत्मार्ग पर लाने का प्रयास करता हैं. नहाए धोए हरी मिले तो मैं नहाऊ सौ बार कई बार भक्त सवाल करते हैं, गुरूजी मैं नहा ली थी मंदिर जा ही रही थी की बच्चे ने गंदगी कर दी, फिर उसको साफ़ किया इसलिए मैं मंदिर नहीं जा पाई. ऐसे में गुरूजी बताते हैं यदि आपका का कोई नन्हा शिशु हैं यदि वह आपकी गोद में गंदगी कर देता हैं. तो उसे साफ़ कर आप मंदिर जा सकते हैं. पुनः नहाने की आवश्यकता नहीं होती हैं. जब भगवान के घर जाना होगा वहां कोई आपको आपके नाम से आपके नगर से नहीं पह्चानेगा. प्रभु के लिए आपके कर्म, आपका आचरण ही वहां आपका परिचय बनता हैं. किसी को बड़े बड़े भवन, लोक चाहिए एक हमारा शिव हैं जो शमशान में रहता हैं. जो पुष्प,फुल किसी को नहीं चढ़ते, जिसमें काटे होते हैं, जिसमें जहर होते हैं जिन पुष्पों को पशु पक्षी भी नहीं खाते, यहाँ तक कि जिस वृक्ष पर यह पुष्प लगते हैं उस पर पक्षी बैठते भी नहीं हैं ऐसे पुष्प को शिव स्वीकार करते हैं. क्योंकि शिव कहते है जो किसी के काम का नहीं हैं मैं उसे भी स्वीकार करता हूँ, और जो मेरे काम का हो जाता हैं फिर उसे संसार भी स्वीकार करता हैं. कुबेरेश्वर धाम जाए तो तिन बाते ध्यान रखें - रुद्राक्ष – यहाँ पर रुद्राक्ष ना तो बेचा जाता हैं ना किसी के हाथ भिजवाया जाता हैं. यह कुबेरेश्वर धाम सीहोर में हाथ पसार कर झोली पसार कर माँगा जाता हैं. अपने रोग दुःख, दोष नष्ट करने हेतु साथ चलने का निवेदन किया जाता हैं. कंकर शंकर पूजन – पांच कंकर पूजन करें. एक कंकर साथ ले जाएं. प्रार्थना करें बाबा मेरे साथ चलिए. मेरी कामना पूरी हो जाएगी तो वापिस ले आउंगी. बेलपत्र प्रशाद – आप जो शिव पर पूजन हेतु बेलपत्र अर्पित करते हैं, उसमें से एक बेलपत्र को पुरे सम्मान के साथ बाबा भोलेनाथ से आशीर्वाद रूप में उसकी करुना के रूप में, दया के रूप में मांगे. उसे प्रशाद के रूप में स्वीकार करें. शमी पत्र : औरव ऋषि की कोई संतान नहीं थी, वे बहुत दुखी थे. औरव ऋषि एवं उनकी पत्नी ने शिव की आराधना करी एवं जब प्रदोष काल आता शाम के समय दोनों अत्यंत भक्ति भाव से शिव की आराधना करते. शिव का भजन करते. बाबा से संतान हेतु कामना प्रार्थना करते. पत्नी का गर्भ ठहरा, एवं औरव ऋषि एवं उनकी पत्नी के यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ. कन्या का जन्म प्रदोष काल में शाम के समय हुआ इसलिए औरव ऋषि ने कन्या का नाम शमी रख दिया. एक ऋषि हुए जिनका नाम था धौम्य ऋषि था. आपके घर एक पुत्र ने जन्म लिया उसका नाम मंदार था.(आकड़े का पुष्प). औरव ऋषि की कन्या एवं धौम्य ऋषि की पुत्री का विवाह हुआ. दोनों का विवाह कम उम्र में संपन्न हो गया. एक बार की बात हैं भगवान गणेश के अनन्य भक्त भुशंडी ऋषि अपनी साधना में मगन थे. भुशंडी ऋषि का सर हाथी का था. एवं धड़ मनुष्य की थी. नव दम्पति ने हंसी ठिठोली करते हुए, शमी एवं मंदार ने ऋषि भुशंडी का मजाक उड़ा दिया. ऋषि ने श्राप दीया. तुम इतने सुन्दर इतने ज्ञान वान होने के बाद भी एक ऋषि पर हँसे हो. तुम जड़ समान बुद्धि व्यक्त कर रहे हो. इसलिए तुम जड़ वृक्ष रूप को प्राप्त हो जाओ. दोनों बच्चे वृक्ष रूप को प्राप्त हो गए. बहुत देर हो गए बच्चे आश्रम नहीं आए. औरव ऋषि एवं धोम्य ऋषि दोनों ढूंढने निकलें. ढूंढते हुए भुशंडी ऋषि के आश्रम पहुचे. सारा वृत्तांत सुना. क्षमा प्रार्थना करी. भुशंडी ऋषि ने कहाँ आप मेरे आराध्य भगवान गणेश जी की शरण में जाइए वे ही आपका उद्धार कर सकते हैं. दोनों ऋषि भगवान गणेश की उपासना करने लगे. भगवान गणेश जी प्रकट हुए उनसे प्रार्थना करी एवं निवेदन किया अपने दोनों बच्चो पर कृपा आशीर्वाद करने का. गणेश जी ने कहाँ - मैं शिव पुत्र गणेश वर देता हूँ. यह शमी एवं मंदार के वृक्ष की पत्ती एवं पुष्प मेरे पिता को एवं मुझे समर्पित करेंगे जो उनकी जो भी कामना होगी वह अवश्य पूरी होगी. दोनों ऋषियों ने कहा - दोनों विषैले एवं कटीले वृक्ष हैं. कोई देवता स्वीकार नहीं करेंगे. भगवान गणेश ने कहा कोई स्वीकार करें या न करें जिस व्यक्ति ने शमी एवं मंदार के पुष्प से मेरी पूजा की हैं उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती हैं. जिस व्यक्ति ने किसी दिन भूल से भी शमी पत्र का दर्शन कर लिया उसे उस दिन 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता हैं. शमी पत्र का पौधा घर में लगाया जा सकता हैं. ताकि उसका दर्शन होता रहे. परन्तु जब वह वृक्ष बनने लगे उसे घर से बाहर यथा योग्य स्थान पर लगा देना चाहिए. पौधे के रूप में (छोटे स्वरूप) में शमी का पौधा लगाया जा सकता है. परन्तु बड़े स्वरूप (वृक्ष) में शमी का वृक्ष घर में नहीं होना चाहिए. यदि आपको लगता हैं किसी ने आपके ऊपर जादू टोना कुछ कर दिया हैं तो आप एक शमी पत्र एवं एक बेलपत्र शिव को अर्पित कर दीजिये किसी का सामर्थ्य नहीं हैं कि कोई आपका या आपके परिवार का कुछ नुक्सान कर सकें गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी द्वारा आज कथा के माध्यम से उपाय भी बताए गए हैं जो आपको शमी पत्र एवं कार्तिक माह में करने चाहिए. यह दो उपाय आपके रोग बीमारी कष्ट को दूर करते हैं एवं दूसरा उपाय धन सम्पदा, व्यापार में वृद्धि करता हैं. यह दोनों उपाय ऐप एवं वेबसाइट के उपाय खंड में उपलब्ध हैं. साथ ही महत्वपूर्ण खंड में आप उपाय से सम्बंधित वीडियो भी देख सकते हैं इसके साथ ही आज द्वितीय दिवस की श्री शिवमहापुराण कथा का सार यही समाप्त होता हैं. श्री शिवाय नमस्तुभ्यम 🙏🙏 हर हर महादेव 🙏🙏
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