
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
एक मन और दूसरा मंदिर यह दोनों जितने निर्मल और साफ़ होंगे उतना ही भगवान महादेव की कृपा हम सब पर होती हैं. मन भी निर्मल और साफ़ होना चाहिए, यदि मंदिर तो साफ़ किया परन्तु मन साफ़ नहीं रख पाए तो यह उचित नहीं हैं, फिर हम सोचे भगवान महादेव की कृपा हम पर हो तो यह संभव नहीं हैं. मन में यदि आसक्ति, मोह, माया में यदि पड़ गया तो वहां शिव का वास नहीं होता हैं. सही तरीके से अर्जित किये धन को व्यव भी करना चाहिए, भले ही यदि आप धन को दान नहीं करना चाहे न करें परन्तु कम से कम खुद पर तो उस धन को खर्च करना चाहिए. मन को साफ़ कैसे करें – मन को साफ़ करने का सब से सुन्दर तरीका है शिव का मंत्र जाप, शिव का भजन, शिव को स्मरण करना. आप जितना शिव भक्ति में लीन रहेंगे आपका मन उतना ही साफ़ होता चला जाएगा. जब मंदिर साफ़ रहता हैं, तो उसमें न तो मक्खियाँ, चीटिया आती हैं ना कोई चिटे आदि आते हैं. ना ही अन्य कोई कीड़े जीव प्रवेश करते हैं. उसी तरह जब मन साफ़ होगा तो उसमें काम, वासना, तृष्णा आदि दुर्गुण प्रवेश नहीं करते. एक सच्चा गुरु धोबी के सामान एवं सच्चा शिष्य एक कपडे के सामान होता हैं. वह गुरु भगवान के नाम का साबुन बनाकर शिष्य को सत्संग में बिठाता हैं. उस शिष्य को प्रभु समरण एवं भक्ति मार्ग के जल से धो धोकर उसके मन को साफ़ एवं पवित्र बनाता हैं. शिक्षा वह पूंजी हैं जो बेटा एवं बेटी दोनों में सामान रूप से बाटा जाना चाहिए. बेटा बेटी में भेद नहीं करना चाहिए. अधिकतर जब एक पुरुष मंदिर जाता हैं तो वह भगवान से अपने व्यापार, व्यवसाय एवं स्वय की सफलता की कामना करता हैं, स्वयं के कष्ट दूर करने की कामना करता हैं. वहीँ जब एक महिला मंदिर जाती हैं तो वह अपने घर परिवार के सुख समृद्धि की कामना करती हैं. बहु के संतान की कामना तो कभी अपने पति की सुख समृद्धि तो कभी अपने बच्चे को परीक्षा में में सफलता की कमाना करती हैं. यह गुण एक महिला में होता हैं जो वह अपने लिए नहीं वह दूसरों के लिए कामना करती हैं. यह तो भगवान की कृपा हैं कि वह उसकी कामना पहले पूरी करता हैं जो दूसरों के सुख दुःख की चिंता करता हैं विष्णुपुराण के अंतर्गत वृत्तांत आता हैं जब तक पृथ्वी पर गौ माता एवं पतिव्रता स्त्री हैं तब तक धरती पर कभी अकाल नहीं पड़ सकता. यह महिलाओं के शक्ति ही जो वे सम्पूर्ण जगत का भरण पोषण करने की ताकत रखती हैं. एक व्यक्ति था जिसके बारे में पुरे राज्य में खबर थी कि वह बहुत बदनसीब व्यक्ति हैं, उस व्यक्ति के मुख का दर्शन यदि कर लिया तो हमारा दिन खराब हो जाएगा. जब यह बात वहां के राजा को को पता चली उन्होंने उन्होंने कहाँ हम भी देखते हैं क्या होता हैं, कल सुबह उसे हमारे सामने लाना फिर हम तय करेंगे यह सच है या झूठ. राजा ने सुबह उस व्यक्ति को देखा, फिर अपने राजकिय कार्य में लग गया. संयोग से राजा उस दिन बहुत व्यस्त रहा दिन भर भोजन तक नहीं कर पाया. शाम को रानी ने कहा स्वामी आज आपने सुबह से भोजन नहीं किया. राजा ने कहा – एक बदनसीब व्यक्ति के मुख का दर्शन कर लिया सुबह से इसलिए मुझे आज सुबह से भोजन प्राप्त नहीं हुआ. मैं कल ही उसे फांसी की सजा देता हूँ. अगले दिन राजा ने उसे फांसी की सजा सुनाई गई. सजा सुन कर वह व्यक्ति हसने लगा. राजा ने अचरज से पूछा तुम्हे फांसी हो रही हैं तुम हस क्यों रहे हो. उस व्यक्ति ने कहाँ तुम मुझे बदनसीब मानकर फांसी दे रहे हो क्योंकि मेरे मुख का दर्शन करने से तुम्हें दिन भर भोजन नहीं मिला, मेरे लिए तो सबसे बड़े बदनसीब तुम हो, तुम्हारे मुख का दर्शन करने से मुझे आज फांसी की सजा हो रही हैं. यह हम पर निर्भर करता हैं हम कैसे समय, स्थान, दशा को शुभ अशुभ मान बैठते हैं. एक विभूषा नाम का साधारण सा एक मानव था, और विमुषा का शरीर भी वीभत्स था. आँखे भी बड़ी लाल-लाल, हाथ पाँव टेड़े से थे जब उसका जन्म हुआ तो माता-पिता ने सोचा ऐसा बालक जन्म हुआ ऐसे भयानक बालक को हम कैसे रख सकते हैं. वे ऐसे बालक को कहीं जंगल में छोड़ आए. अपने पूर्व जन्म के कुछ कर्मो के कारण वह विमुषा शिव भक्त हुआ. वह कहीं से निकलता तो लोग वहां से दूर हो जाते हैं, कि ऐसे व्यक्ति के मुख का दर्शन करने से हमारा दिन खराब हो जाएगा. कोई विमुषा के सन्मुख जाना भी पसंद नहीं करता था. फिर भी विमुषा आनंद में शिव की भक्ति में लीन रहता. उसके पास कुछ नहीं था अर्पित करने को तो वह विमुषा भोलेनाथ को अरहर की पत्तिया अर्पित करता था, उसी से शिव का श्रृंगार करता था. एक दिन ऐसा आया जब महादेव उसकी सेवा से प्रसन्न हो कर उसके सामने प्रकट हो गए. बाबा ने पूछा मांगो तुम क्या वरदान चाहते हो. विमुषा के मुख से कुछ नहीं निकल रहा था, वह बस शिव के सुन्दर रूप को निहार रहा था. वह दर्शन में ही खो गया शिवजी ने पुनः कहा विमुषा मांगो तुम क्या वरदान चाहते हो. हे प्रभु यदि आप कुछ देना चाहते हैं तो यह वर दे कि शरीर देखकर नहीं नहीं केवल मन देखकर शिव करुणा करता चला जाए. शिव वरदान देते हैं हे विमुषा तुम्हे वरदान देता हूँ शिव कभी शरीर देखकर नहीं भक्त का मन देककर उस पर करुणा एवं कृपा करेगा. लोगो ने सोशल मीडिया youtube आदि के माध्यम से भ्रम फैला रखा हैं, कुछ भी वीडियो बना देते हैं, आज प्रदोष हैं शिव पर यह मत चढ़ाना, आज शिवरात्रि पर यह मत चढ़ाना शिव नाराज हो जाएंगे. गुरुदेव कहते हैं, यदि आपके पास कुछ नहीं हैं अर्पित करने को, तो शिव मंदिर जाए तो आपके आस पास जो भी पौधा हो, उसकी पत्तिया भी अर्पित कर दोगे तो महादेव आपके भाव से प्रसन्न हो जाएगे एवं आपकी उस किसी भी पौधे की पत्ती को भी स्वीकार करेंगे. एक बार वासुकी नाग से मिलने उनके बड़े भाई शेषनाग, छोटे भाई, तक्षक, पिंगला आदि अन्य सभी भाई पहुचें. सभी भाइयों ने कहाँ से वासुकी एक बार हमें भी शिवजी की सेवा का मौका दो. वासुकी नाग ने ससम्मान कहाँ भाइयों यह संभव नहीं हो पाएगा, फिर भी अन्य नागों ने बार बार निवेदन किया तो वासुकी नाग ने कहाँ ठीक हैं मैं एक बार प्रयास कर के देखूंगा. वासुकी नाग ने भोलेनाथ से निवेदन किया हे प्रभु भोलनाथ मेरे ये भाई आपकी कुछ सेवा करना चाहते हैं, आप इन पर भी करुणा एवं दया भाव रखें. तब भोलेनाथ ने एक लीला रची. एक बार माता पार्वती पीपल के वृक्ष के निचे बैठी थी. सावन के माह था माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा सावन का यह सुन्दर महिना हैं, मेरा भी झुला झूलने का मन हो रहा हैं. तब भोलेनाथ के आदेश पर नंदी ने एक आम के वृक्ष पर एक झुला तैयार किया. इस झूले में कोई डोरी नहीं थी बल्कि शेषनाग, पिंगला नाग, कारकोटक नाग एवं तक्षक नाग ये चारों डोरी बनकर उस झूले में बंधे थे. , वासुकी नाग की डोरी बांधकर नंदी झुला देने लगें. तब भोलेनाथ एवं माता पार्वती झूले का आनंद लेने लगे. इसी के साथ आज तृतीय दिवस की श्री शिवमहापुराण कथा यहाँ विराम लेती हैं. कथा में गाए गए सुन्दर शिव भजन आप Gurudev Pandit Pradeep Mishra App एवं youtube चैनल Gurudev App पर प्राप्त कर सकते हैं श्री शिवाय नमस्तुभ्यम हर हर महादेव 🙏🙏
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