
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
सम्पूर्ण माह में केवल श्रावण माह एक ऐसा माह हैं, जिसमें मनुष्य हो, सर्प हो, किन्नर हो, गन्धर्व हो या कोई भी जीव हो, यदि वे शिव मंदिर के सामने से भी हो कर गुजर जाते हैं तो शिव उनपर कृपा करते हैं. समुद्र के तट पर बैठे हुए एक पक्षी ने सत्संग किया, उस सत्संग उस भक्ति का बल उसे प्राप्त होता हैं. उस सत्संग का फल यह हुआ कि समुद्र के किनारे बैठ कर वह पक्षी समुद्र के दुसरे किनारे से दूर कहीं बैठी हुई माता सीता को देख लेता हैं. जब एक पक्षी पर सत्संग प्रभु भक्ति का यह प्रभाव होता हैं तो यदि हम हृदय से मन से शिव भक्ति का नाम स्मरण करें, शिव का मनन करें तो हम क्यों नहीं शिव की अविरल भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं. तिन तरह के शब्ध होते हैं - कर्णप्रिय, वर्णप्रिय और तीसरा होता हैं धर्मप्रिय. कर्णप्रिय – ये वे शब्द होते हैं, जो हमें सुनने में प्रिय और अच्छे लगते हैं, यह धीरे धीरे हमारे भीतर अहंकार को जन्म देता हैं. और बाद में यही अहंकार हमारे जीवन में दुखो का कारण बनता हैं. वर्णप्रिय - अवधुतेश्वर महादेव : श्रावण माह में यदि महादेव के अवधुतेश्वर महादेव की कथा का स्मरण कर लेने मात्र से 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन का फल प्राप्त होता हैं. एक बार इंद्र को लगा मैं ही गुरु हूँ. मैं ब्रहस्पति देव के पास जाता हूँ. वे अपने आनंद अपनी मस्ती में ऐरावत पर बैठकर ब्रहस्पति की कुटियाँ में पहुचे. वहां पहुचकर इन्द्रदेव ब्रहस्पति देव के द्वार पर जाकर खड़े हो गए. वहीँ खड़े होकर उन्होंने आवाज लगाई गुरुदेव हैं. ब्रहस्पति देव की तिन पत्नियाँ थी - शुभा, तारा, ममता. इनमें से शुभा पार्थिव शिवलिंग पूजन में लगी थी. वह अपने पूजन से उठी नहीं. इंद्र देव ने पुनः आवाज लगाईं. शुभा को आवाज सुनाई दे रही थी, परन्तु उसे पार्थिव शिवलिंग पूजन को बिच में छोड़ कर उठना उचित नहीं लगा. बार बार आवाज लगाने पर भी कोई नहीं आया तो बाहर खड़े इंद्र को क्रोध आने लगता हैं. तभी वहां ब्रहस्पति देव पधारे. देवराज कहने लगे – हे ब्रहस्पति देव आपकी पत्नी ने हमारा आतिथ्य नहीं किया. ब्रहस्पति देव ने देवराज को शांत किया. गुरु ब्रहस्पति देव ने सोचा देवराज इंद्र को थोड़ी थोड़ी देर में गुस्सा आ जाता हैं, उन्हें थोड़ी थोड़ी देर में अहंकार/अभिमत्ता जाग्रत हो जाती हैं. ऐसे में देवराज इंद्र को पार्थिव शिवलिंग के दर्शन करने चाहिए जिससे इनका अहंकार नष्ट हो सके. वे देवराज इंद्रा को लेकर जहां शुभा पार्थिव शिवलिंग पूजन कर रही थी, उस आश्राम की और बढ़ने लगे. महादेव ने ऐसे में देवराज इंद्र की परीक्षा लेनी चाही. वे दोनों के सामने अवधूत रूप में (नग्न रूप में, भस्म लगाए) प्रकट हो गए. इंद्र ने पूछा आप कौन हैं. अवधूत रूप में खड़े शिव शांत रहें. दुबारा इंद्र क्रोधित हो कर पूछने लगे आप कौन हैं. जब वे कुछ नहीं बोले, इंद्र ने वज्र से अवधूत रूप में खंडे शिव जी पर प्रहार किया. शिवजी ने वज्र सहिंत इंद्र देव का हाथ काट दिया. उनके तीसरे नेत्र से ज्वाला निकलने लगी. वे उस ज्वाला की अग्नि में इंद्र देव को भस्म करने ही वाले थी. तभी ब्रहस्पति देव समझ गए कि देवाधिदेव महादेव हैं जो इंद्र का अहंकार को तोड़ने के लिए प्रकट हुए हैं. उन्होंने प्रणाम किया. क्षमा याचना की. जब भोलेनाथ शांत हुए उन्होंने कहा हे ब्रहस्पति देव आप मेरे इस अवधुतेश्वर रूप का दर्शन कर रहे हैं. मेर्र तीसरे नेत्र से जो अग्नि उत्पन्न हुई हैं उसे कहाँ रखें. तब ब्रहस्पति देव ने कहाँ आप इस अग्नि पुंज को समुद्र में डाल दीजिए. जैसे ही वह अग्नि पुंज समुद्र में समाहित होता हैं. उसमें से जलंधर नामका पुरुष प्रकट होता हैं. यह जलंधर बहुत बड़ा दैत्य हुआ, जिसने बहुत उत्पात मचाया. परन्तु जलंधर की पत्नी वृंदा बहुत ही पतिव्रता नारी थी. जलंधर का उद्धार करने के लिए वृंदा का सतीत्व भंग करना आवश्यक था. वृंदा का सतीत्व भंग होने पर महादेव ने जलंधर का उद्धार कर सद्गति प्रदान की. भगवान विष्णु को वृंदा ने श्राप दिया आपने मेरा सतीत्व भंग किया आप तुरंत पाषाण के हो जाओ. भगवान् विष्णु शालिग्राम रूप को प्राप्त हुए. एवं वृंदा तुलसी रूप में घर घर पूजी जाने लगी. प्रत्येक स्त्री में महादेव सात रूप में निवास करते हैं कीर्ति – जब जब नारी को प्रशंसा प्राप्त होती हैं, वह प्रशंसा शिव रूप में प्राप्त होती हैं. सौन्दर्य – नारी में शिव का रूप सौन्दर्य के रूप में विराजित होता हैं. वाणी – नारी को वाणी की मधुरता शिव रूप में प्राप्त होती हैं. समय की स्मृति – नारी समय की स्मृति नहीं भूलती हैं. यह स्मृति शिव रूप में विराजित हैं धारण शक्ति – एक नारी में जितनी धारण शक्ति होती हैं, उतनी किसी और की नहीं होती. शिव स्वयं इस धारण शक्ति के रूप में विराजित रहते हैं धैर्य – परिवार में कैसी भी स्थिति रहे वह धैर्य से परिवार को संभालती हैं. यह धैर्य नारी को शिव प्रतिक रूप में प्राप्त होता हैं क्षमा – नारी क्षमा की मूर्ति होती हैं. कोई कितना भी भला बुरा कह दे, नारी क्षमा कर डेट हैं. क्योंकि नारी में क्षमा रूप में स्वयम देवाधिदेव महादेव निवास करता हैं. यदि आप कहीं किसी मंदिर में पूजन में, भक्ति में या भजन के लिए गए हैं तो चाहे वह दो मिनिट का समय हो, परन्तु वह दो मिनिट फिर पूरी तरह से परमात्मा को समर्पित करना चाहिए. वहां बैठकर अपने मन को इधर उधर की बातों में, बेवजह की चर्चा में नहीं लगाना चाहिए. जितनी भी देर आप शिव भक्ति को दे रहे हैं, फिर वह पूरा समय केवल शिव को देना चाहिए. गुरुदेव द्वारा आज की कथा में पांच स्थान बताए गए हैं, जहाँ बैठकर यदि आप पूजन करते हैं, तो सही जगह ध्यान लगाना चाहिए. यह जानकारी आप ऐप के उपाय खंड में देख सकते हैं. आप यह जानकारी https://gkcmp.in पर भी प्राप्त कर सकते हैं. इस तरह आज की यह चतुर्थ दिवस की शिवमहापुराण कथा यही समाप्त होती हैं. हर हर महादेव श्री शिवाय नमस्तुभ्यम 🙏🙏
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