
ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन
जब भी प्रेम का नाम आता हैं, तो सबसे पहले शिव का नाम आता हैं. शिव प्रेम देते भी हैं और शिव अपने भक्तों का प्रेम प्राप्त भी करते हैं. आज के दिन को मित्रता दिवस बना दिया गया हैं. जिसे फ्रेंडशिप डे कहा जाने लगा. एक अच्छा मित्र आपके अच्छे चरित्र का भी निर्माण करता हैं, और वह आप में एक अच्छे मित्र का भी निर्माण करता हैं. शिव हमारे पिता भी हैं शिव हमारे सखा भी हैं. और शिव हमारे तारणहार भी जो हमें इस मृत्युलोक से हाथपकड़ कर ले जाते हैं. सतयुग त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग इन सभी युगों में प्रेम के भाव को प्रकट करने वाला और कोई प्रेम के भाव को दर्शाने वाला है तो वह हमारा देवाधिदेव महादेव हैं. माता सती जब अग्निकुंड में अपने शरीर को त्याग देती हैं. तब उस शरीर को लेकर महादेव तांडव रच देते हैं. वहीँ कौन स्त्री ऐसे होगी जो यह देख ले कि इस स्थान पर उसके पति का सम्मान नहीं हैं, पति का आदर नहीं हैं, तो वह वह अपने पिता के घर ही हवन कुंड में अपना शरीर त्याग देता हैं. यह तभी संभव हैं, जब आप प्रेम के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर लेते हैं कि अपने प्रियतम का अपमान भी सहन नहीं कर सकते हैं. जबरदस्ती या जोर जबरदस्ती से किसी को मंदिर नहीं ले जाया जा सकता, ना ही प्रभु भक्ति, कथा पांडाल या भजन में बिठाया जा सकता, साथ ही प्रेम के लिए भी किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता. जब शिव नाम का आनंद हमारे भीतर से आने लगता हैं, मन स्वतः शिव भजन जपने लगे तब समझ जाना अब शिव हमारे ह्रदय में वास करने आया हैं. इसलिए स्वतः आप आनंदित हो कर शिव नाम में शिव भजन में डूबने लगते हैं. शिक्षा और संस्कार इन दोनों का साथ व्यक्ति को धन सम्मान सबकुछ दिला सकता हैं. यदि आप शिक्षित हैं और बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं तो साथ में प्रयास करें बच्चो को अच्छा संस्कार भी दे. क्योंकि बाहर के अच्छे अच्छे कॉलेज, अच्छी स्कूल आपके बच्चों को अच्छी शिक्षा तो दे सकते हैं. परन्तु एक सफल इंसान एक सम्पूर्ण इंसान होने के लिए जिन संस्कारों की आवश्यकता होती हैं, वह माता पिता ही अपने बच्चे को दे सकते हैं. और जीवन में आप चाहे किसी को कोई दान करें या न करें, परन्तु आपके द्वारा एक निर्धन परिवार के किसी बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी ले लेने से उसकी आने वाली पीढ़िया भी अच्छी शिक्षा को प्राप्त कर लेती हैं. जब कोई अपने घर पर होता हैं, तब उसे सबसे ज्यादा आनंद एवं सुख का अनुभव अपने माता एवं पिता के कमरे में होता हैं. जहाँ वह सबसे ज्यादा समय बिताता हैं. यही आनंद एक शिव भक्त को अपने शिव के मंदिर में जाता हैं. जब वह शिव मंदिर में जाता हैं, उसे वह सुख एवं आनंद प्राप्त होता हैं, जो किसी को अपने पिता या माता के घर आता हैं. पुराने समय में घर पर खाना बनाने के लिए लकड़ी जलाई जाती थी, कंडे जलाए जाते थे. उससे जो राख बनती थी उसे संभाल कर अलमारी में नहीं रखा जाता था, उसे फेंक दिया जाता था. लकड़ी से निकली राख, कंडे से निकली राख जो किसी काम की नहीं रहती हम उसे फेंक देते हैं. देवाधिदेव महादेव वह हैं, कि जिस राख का कोई महत्व नहीं होता उसे भी अपने शरीर पर धारण कर उसका भी महत्त्व बढ़ा देते हैं. जो सर्प मंथन के समय पर जिसे रस्सी के रूप में उपयोग किया गया हैं, जिसका शरीर समुद्र मंथन के समय लहूलुहान हो गया, जो शरीर से बिलकुल कमजोर हो गया था, उसे मंथन से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ. ऐसे में उस सर्प को अपने गले पर धारण करने वाले हमारे देवाधिदेव महादेव ही हैं. जैसे कन्हेर का पुष्प, धतुरा, राख, सर्प दुनियां जिसको त्याग देती हैं, दुनियां जिसको नकार देती हैं, जो दुनियां के लिए किसी काम का नहीं होता उसे शिव सहारा देते हैं, उसे शिव स्वीकार करते हैं, उसे शिव अपने ऊपर धारण करते हैं. और जिसे एक बार शिव स्वीकार कर लेते हैं, उसे फिर सम्पूर्ण संसार स्वीकार कर लेता हैं. 33 कोटि देवताओं में केवल महादेव हैं, जो मात्र एक लोटा जल से प्रसन्न हो जाते हैं. एवं अपने भक्तों का उद्धार करने के लिए दौड़ पडते हैं. एक प्रसंग आता हैं, जिसमें दक्ष प्रजापति के बेटियां जिनका विवाह चन्द्र देवता के साथ हुआ था, वे सभी 27 कन्याएं रोती हुई अपने पिता के पास आती हैं. दक्ष प्रजापति ने अपनी बेटियों से रोने का कारण पूछा. सभी बेटियां रोती हुई कहती हैं, पिताजी जिस चन्द्र देव से आपने हमारा विवाह किया वह केवल रोहिणी से प्रेम करते हैं, हम अन्य पत्नियों से प्रेम नहीं करते हैं. यह सुनकर दक्षप्रजापति को बहुत बुरा लगा. वे चन्द्रदेव के पास गए. उन्हें समझाया कि आपका प्रेम केवल रोहिणी के प्रति हैं, अन्य भी आपकी पत्नी के रूप में आपके साथ रहती हैं. उन्हें भी समान प्रेम एवं सम्मान मिलना चाहिए. चन्द्र देव को बात समझ में आई एवं उन्होंने स्वीकार किया कि अब से सभी पत्नियों से एक समान व्यवहार करेंगे, उनके बिच कोई भेदभाव नहीं करेंगे. कुछ समय तक वे अन्य से सही व्यवहार करते परन्तु बाद में पुनः रोहिणी को छोड़ कर अन्य पत्नियों से रुखा व्यवहार करने लगे. इस बार राजा दक्षप्रजापति को गुस्सा आया एवं उन्होंने श्राप दिया हे चन्द्रदेव तुम्हे काया का रोग होगा एवं तुम्हारा शरीर गल गलकर धीरे धीरे निचे गिरने लगेगा. चन्द्रदेव दुखी हुए. उनका शरीर गलकर निचे गिर रहा था. उन्होंने नारद जी से निवेदन किया हे देवर्षि नारद कुछ तो उपाय बताइए जिससे मेरी इस पीड़ा का समाधान हो सकें. चन्द्र देव को शिव भक्ति का मार्ग सुझाया गया. उन्होंने शिव भक्ति शिव आराधना करी. महादेव ने आशीर्वाद दिया तुम्हारी काया का रोग दूर करता हूँ और मैं तुम्हारी भक्ति आराधना से प्रसन्न हूँ मैं तुम्हे सदैव अपने साथ शीश पर सुशोभित रखूँगा. जहाँ चन्द्र देव ने शिव का पूजन आराधना करी वे भोलेनाथ श्री सोमनाथ महादेव के रूप में संसार में विख्यात हुए. आपके रिश्तेदार रूठ जाए, परिवार वाले रूठ जाए, आपके समाज के रूठ जाए, आपके मित्र सम्बन्धी रूठ जाए तो भी चल जाएगा. यहाँ तक कि आपकी किस्मत रूठ जाए वह भी चलेगा परन्तु किस्मत बनाने वाला वह देवधिदेव महादेव हमसे नहीं, कभी नहीं रूठना चाहिए. यदि आपको कोई भी बीमारी हो, कितनी भी गंभीर बीमारी हो, अपनी बीमारी के इलाज के लिए आप अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाएं. डॉक्टर को शिव का रूप मानकर उन्हें सम्मान देवे एवं वे जो दवाई देवे उसे कुंदकेश्वर महादेव का नाम स्मरण करते हुए ग्रहण करें. बाबा भोलेनाथ की दया एवं आशीर्वाद से धीरे धीरे आपकी वह बीमारी अवश्य दूर होगी. गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा जी द्वारा बताया गया है कि भारत भूमि ही नहीं विदेश में यदि कोई व्यक्ति जिसके गाँव में नगर में शिवमंदिर नहीं हो, वह शिवलिंग स्थापीत करना चाहता हो तो उसे श्री कुबेरेश्वर धाम सीहोर से निशुल्क शिवलिंग एवं नंदी स्थापना करने हेतु प्रदान किये जाएंगे. इस तरह आज की यह पंचम दिवस की सुन्दर शिवमहापुराण कथा यही समाप्त हो रही हैं. कथा में गुरुदेव द्वारा सुन्दर भजन गाया गया इस भजन को आप हमारे YouTube चैनल ‘Gurudev App’ पर देख सकते हैं. हर हर महादेव श्री शिवाय नमस्तुभ्यम🙏🙏
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